चोट जब स्वाभिमान पर लगती है तो, करारा जवाब फिर मिलता है।
तुम लाख दगा करो हैं संस्कार तुम्हारे, पर इक दिन नकाब ये उतरता है।
कौन हारा है गिनती के हथियारों से , इतिहास में देख लो चाहे फिर;
इक जज़्बा जो उमड़ता है अपनों का, वीरों के हौसलों में वो दिखता है।
तुम लाख दगा करो हैं संस्कार तुम्हारे ...........
भूल कर भी न भूलेंगे वो ज़ख्म , तुम रह रहकर छुप कर जो देते हो;
जिस दिन होगा हिसाब सुन लो, फिर न नुकसान अपना भी दिखता है।
तुम लाख दगा करो हैं संस्कार तुम्हारे,..........
परवाह कहां फिर परवाने मिटने की, करते हैं वतन की आन शान पे;
मां कहते हम धरा को देशवासी, वो न बचता जो निगाह बुरी रखता है।
तुम लाख दगा करो हैं संस्कार तुम्हारे...........
कामनी गुप्ता
जम्मू !
जय हिन्द!
जय हिन्द की सेना।