सुरक्षा एवं जीवन यापन दोनों ही जीवन जीने के लिए अति आवश्यक है
सुषमा दिक्षित शुक्ला
लाक डाउन लगाना व समय की मांग पर ढीला करना ,मानवीय जरूरत के दो ऐसे पहलू हैं जिसमे से किसी को नजर अंदाज नही किया जा सकता और यह सामंजस्य समय के अनुसार बनाना भी जरूरी था ।
जिसका कुछ तो सकारात्मक परिणाम ही मिला है वरना जो संक्रमण के मामले लाखों में ही पहुंचे हैं वह अब तक बिना लॉक डाउन के शायद करोड़ों में पहुंच चुके होते ।इस बीच बीमारी से निपटने की तैयारी का भी मौका मिल गया ।रही बात अब लॉक डाउन से बाहर आने की तो वह समय की मांग थी और देश की आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की जरूरत भी थी ।संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों को छोड़कर लाक डाउन से मुक्त होने की जो प्रक्रिया शुरू हुई है वह वैसे तो 8 जून को और तेज होगी लेकिन बहुत कुछ राज्य सरकारों और उनके प्रशासन पर निर्भर करेगा फिलहाल लॉक डाउन की पाबंदियां हटाने का सिलसिला कायम करना समय की मांग और जरूरत थी।इसे शिथिल करने संबंधी अधिकार राज्यों को दे दिए गए हैं ,लेकिन वे अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान रखें तो बेहतर होगा कि आर्थिक एवं व्यापारिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की सख्त जरूरत है। इसमें सफलता तब मिलेगी जब आवाजाही पर अनावश्यक अंकुश नहीं लगेगा ।इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि केंद्र सरकार ने आवाजाही को प्रोत्साहित करने में पहले ही कदम उठाए थे लेकिन राज्यों की दखलन्दाजी के शिकार हो गए। राज्यों में तो हवाई और रेल यात्रा शुरू करने के केंद्र सरकार के फैसले पर भी अनिच्छा प्रकट की थी ,बस सेवाएं शुरू करने में भी मुश्किल से दिलचस्पी दिखाई। नतीजा यह हुआ कि कारोबारी गतिविधियां अपेक्षा के अनुरूप आगे नहीं बढ़ सकी ।
कम से कम अब राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि कैसे कारोबारी गतिविधियों को बल मिले बल्कि उसकी गति में जो बाधाएं आ रही हैं वह प्राथमिकता के आधार पर दूर हो सके इन बाधाओं को दूर करने में राज्य को अतिरिक्त दिलचस्पी दिखानी होगी ।
कुल मिलाकर हम कर सकते हैं कि लॉक डाउन से बाहर आना समय की मांग भी थी और जरूरत भी ।