दोहा---
जय जय सीताराम जय,
जय महारूद्र हनुमान।
जय जय श्री शनिदेव जय,
करहु जगत कल्याण।।01
विपदा छाई जगत में,
मचा है हाहाकार।
असुर कोरोना का करे,
बिन को तेरे संहार।।02
भयाक्रांत पल-पल मरे ,
यह सारा संसार।
त्राहिमाम शरणागतम्,
व्याधि हरहू करतार।।03
चौपाई----
सृजनहार हौ तुम जगपालक।
दुःख विनाशक अरिकुल घालक।।04
विपदा बड़ी सृष्टि पर आई।
सूझे न पंथ बहु दुःख दाई।।05
शिव के अंश शनी हनुमाना।
नीति धर्म बुधि शक्ति निधाना।।06
रवि सुत छाया मातु तिहारी।
न्यायधीश जन संकट हारी।07
त्रिभुवन तव महिमा शुचि व्यापी।
रविनंदन तुम महाप्रतापी।।08
प्रभु प्रकोप शांत अब कीजै।
अभय होय जग सो वर दीजै।।09
महामारी नाशै छन माहीं।
बिनु तव कृपा से संभव नाहीं ।।10
सुमिरौं राम भक्त हनुमाना।
प्रभु तुम हौं बल बुद्धि निधाना।।11
जस सहाय भय तुम रघुवीरा।
सकल काज सारे तुम वीरा।।12
कनक लंक जारे छिन माहीं।
सीता सुधि भाख्यो प्रभु पाहीं।।13
रावन दर्प चूर तुम कीन्हा।
बधि सुत अक्षय दक्षिणा दीन्हा।।14
वीर धुरंधर वेद प्रवीना।
महारूद्र रावन नहिं चीन्हा।।15
देखि काल ठहरत नहिं आगे।
बाधा सकल नाम जप भागे।।16
शेष सहस मुख सकहिं को बरनी।
त्रिभुवन विदित नाथ तव करनी।।17
सुर नर मुनि जन के तुम रक्षक।
काल कराल असुर दल भक्षक।।18
करहु दया हनु आस बड़ी है।
बिपदा द्वारे आन खड़ी है।।19
पिसे जगत प्रभु बिनु अपराधा।
मानव भूल विनिर्मित बाधा।।20
हरहू सकल दुख दारुण भंजन।
केशरि सुत हन् हनु जग वंदन।।21
बाधा व्याधि बांधि हनुमंता।
जगत अभय कुरू नाथ तुरंता।।22
सुन विनती मम् मारुति नंदन।
सुर नर मुनि जन त्रास प्रभंजन।। 23
रात- दिवस मोहि नींद न आवै।
अदृश्य कोरोना अस डरपावै।।24
वैद्य हताश सकल जग माहीं।
औषधि सूझि परत कुछ नाहीं।।25
कार्य विमुख भय नर जग सारे।
एकन्ह एक सशंक निहारे।। 26
अस दुर्गति देखी नहिं साईं।
नर ते नर लखि दूरि पराईं।। 27
मातु पिता सुत भगिनी दारा।
पीड़ित सब प्रभु दास तुम्हारा।।28
एहि अवसर तुम आइ उबारौ।
तुम पहिं सब संभव करि डारौ।। 29
अब विलंब मत करहु दयाला।
अंजनि सुत सेवक रघुपाला।।30
बीते सात मास प्रभु ऐसे।
सात जनम बीते हों जैसे।। 31
मेटहु त्रास हरहु जग शूला ।
नाथ कृपा तव सब अनुकूला।।32
महारोग प्रभु सहा न जाई।
करहु बेगि कपीश उपाई।।33
त्रस्त भये बालक नर नारी।
रामदास तुम हौ भयहारी ।।
हाथ जोड़ विनवउं हनुमाना।
दोष सकल मम् दयानिधाना।। 34
क्षमहु मोहिं बालक मैं तोरे।
पापारत तन मन है मेरे।।35
पूजा जप तप योग न होई।
मूढ़ अधम अति महा निगोई।।
36
मैं मतिमंद महा अभिमानी।
छमहु दयानिधि बालक जानी।।37
जय शनिदेव जय केसरि नंदन।
"अनुज" विनय सुन हे जगवंदन।।38
ध्यान धरे नित प्रेम से,
जो श्रृद्धा नत इंसान।
तापर कृपा सदा करें,
श्री महावीर हनुमान।।39
रवि नंदन शनिदेव जय,
होहु प्रसन्न दयालु।
दुसह रोग से मुक्ति दो,
हे दया सिन्धु कृपालु।।40
सुरेन्द्र दुबे (अनुज जौनपुरी)
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