सेक्युलर होना सबसे बड़ा पाप है

धीरेन्द्र त्रिपाठी







हमारे राष्ट्र के कुछ तथाकथित व्यक्तियों के नाते हमारा संविधान में धर्मनिरपेक्षता पर उस प्रकार बल दिया गया है ,जैसे संविधान को अम्बेडकर ने नही बल्कि कई मिशनरियों और धर्मगुरुओं ने बनाया है, चूँकि संविधान में धर्मनिरपेक्षता को अंगीकृत किया गया तो हमारा राष्ट्र भी धर्मनिरपेक्ष हो गया,जिसे अंग्रेजी भाषा में सेक्युलर कहते है। 

मुझे इस बात का गौरव भी है कि हमारा राष्ट्र एक सेक्युलर देश है, क्योंकि यहाँ पर कई धर्म के लोग निवास करते है तो इसे ऐसा बनाया गया और उचित भी यही था कि संविधान में सेक्युलरिज्म(धर्मनिरपेक्षता) को स्थान दिया जाए । किन्तु संविधान या अन्य किसी भी पुस्तक में सेक्युलरिज्म केवल और केवल राजतंत्र के पदाधिकारियों के लिए है,आम जनता सेक्युलर होने के लिए बाध्य नही है।

राजतंत्र में सेक्युलरिज्म क्यों ? वो इसलिए कि कही ऐसा न हो कि जो अधिकारी है वह दूसरे धर्म का जबरन धर्मान्तरण करा दे।यदि ऐसा होता तो शायद राष्ट्र हिन्दू राष्ट्र हो गया होता, अब आप यह सोच रहे होंगे कि सत्य सनातन धर्म भी समाप्त हो सकता है,तो आपको बता दिया जाए कि जब गांव के मुंसिफ से लेकर दिल्ली के बादशाह तक यह चाहते थे कि सनातन धर्म को समाप्त किया जाए,तब तो हुआ नही तो ये लोकतांत्रिक सरकारे क्या बिगाड़ लेती। 

अब हम इस बात पर विचार करते है कि , हमें सेक्युलर क्यों नहीं होना चाहिए वो इसलिए कि हम किसी धर्म क्यों माने, जब हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ है औऱ यदि आप अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ नही मानते तो आपको धर्मांतरण कर लेना चाहिए। 

आइये विचार करते है कि जब हमें किसी के धर्म के देवी-देवता को पूजना होता या हमें उनके धर्म के आधार पर चलना होता या हमे उनकी संस्कृति, सभ्यता में रहना होता तो हमें हमारा विश्वेश्वर इस धर्म में क्यों जन्म देता । हम अपने धर्म को छोड़कर मस्जिदों में, मजारो पर मत्था टेके या स्वयं को उनका हितैषी दिखाने के लिए टोपी पहने और इफ्तार पार्टी में शामिल हो अथवा मुस्लिम समुदाय के लोग भगवा वस्त्र धारण करे हमारे संस्कृति पर चले तिलक लगाएं तो हम दोनों ही दूसरे धर्म का दिखने और दिखाने में किसी धर्म के नहीं रह जाते है।

यहाँ पर अकारण ही एक कहावत स्मरण हो जाता है -

आधीछोड़ पूरी को धावे,आधी मिले न पूरी पावे

बस यही हाल है सेक्युलरों का, वे किसी धर्म के नहीं रह जाते है बेचारे।

किसी अन्य धर्म के बताए हुए रास्ते पर चलना या उनके धर्म के संस्कार, संस्कृति को अपनाना केवल और केवल ढोंग है और वर्तमान में यह एक पब्लिक स्टंट(सार्वजनिक करतब)है।इस करतब का केवल और केवल एक उद्देश्य होता है और वह यह कि अपना काला चरित्र और नाकाम चेहरा छुपाना। हमारे राष्ट्र के कई संगठनों ने इस करतब को अपने संगठन के मुख्य उद्देश्य और कार्यप्रणाली में निहित किया है।समय - समय पर उनके परम कद्दावर नेता इस करतब और ढोंग को दिखाने के लिए एकाएक प्रकट हो जाते है और जैसे अहम रूपी सत्ता के छणिक कुर्सी पर बैठते है तो उनका केवल और केवल एक ही धर्म रह जाता है कि कुर्सी बचाते हुए अपना घर कैसे भरे, इसके उदाहारण आप भारतीय इतिहास में देख सकते है। इस तथ्य को आप कभी नहीं नकार सकते कि ये वही लोग है जो हमें औऱ आपको लड़ाते रहते है, क्योंकि इनका एक ही धर्म होता है वो होता है शासन और इनका धर्म का देवता होता है सत्ता।किसी भी धर्म के किसी भी पुस्तक में मानवता की हत्या और लड़ाई की बात नही कही गयी है। किन्तु हम सेक्युलर इतने सेक्युलर हो जाते है कि अपने ईश्वर को छोड़ कर सत्तापरस्तो को ही अपना ईश्वर मान लेते है और उनका कहा करने लगते है , इन सत्तापरस्तो में बिके हुए धर्मगुरु से लेकर नेता और कुछ चुनिंदा लोग होते है । इनका काम धर्म पर चलाना नही धर्म से भटकाना होता है जिससे इनके धर्म की दूकान चलती रहे हम जैसे ही सेक्युलर होते है वैसे हम डरने लगते है तो हम दूसरे लोगों को खुश रखने में अपने धर्म अपनी संस्कृति अपना संस्कार सब कुछ खो देते है, जबकि हम अगर अपने धर्म पर चले और अपने धर्म के बताए हुए नियम पर चले तो हम किसी से भी शत्रुता मोल नही लेंगे और सही को सही तथा ग़लत को गलत कहेंगे क्योंकि हमारा धर्म इस बात की आज्ञा देता है लेकिन सेक्युलरिज्म इस बात की आज्ञा नही देता है वो कहता है कि चुप रहो नही तो सेक्युलरिज्म समाप्त हो जाएगा और ऐसी परिस्थितिया ही गोधराकांड को शुरू करती हैै और गुजरात दंगों से इति होती है । जो पूरे मानवता पर कलंक लगा देती हैं अतः आपसे निवेदन है कि सेक्युलर न होकर अपने-अपने धर्म का पालन करे। जिससे आपकी आंखे खुली रहे और आप समय - समय पर उत्तर देने और प्रश्न करने में सक्षम रहे।

 

<b>उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है

जो ज़िन्दा हों तो ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है</b>

 

ध्यान रहे! मैंने कहा कि आप सेक्युलर न रहे पर ये नहीं कहा कि आप किसी अन्य धर्म के लोगो का अपमान करे अथवा अन्य धर्म को सम्मान न दे , सेक्युलर न होना का अर्थ कट्टरता से लगाना निहायत ही बेवकूफी है। सेक्युलर न होने का अर्थ है कि किसी अन्य धर्म को मानना नहीं है अपने धर्म के नियम पर चलना है और अपने धर्म की रक्षा करनी है,न कि किसी अन्य धर्म को नुकसान पहुचाना है ।हमारे सनातन धर्म में लिखा गया है - 

किअयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् |

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् || 

अर्थात - किसी को छोटा, किसी को पराया कहना छोटे ह्रदय की व्यक्तियों का कार्य है ।(उदार)विशाल ह्रदय के व्यक्ति के लिए सारी पृथ्वी उनकी अपनी है। किन्तु यह भी स्मरण रह कि मनुस्मृति के आठवें अध्याय के पन्द्रहवें श्लोक में लिखा है कि -

<धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।

तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् । 

वाक्यांश का अर्थ है, जो लोग ’धर्म’ की रक्षा करते हैं, उनकी रक्षा स्वयं हो जाती है। इसे ऐसे भी कहा जाता है, ‘रक्षित किया गया धर्म रक्षा करता है’। यहाँ केवल और केवल धर्म शब्द का उल्लेख किया गया है न कि सनातन अथवा इस्लाम आदि धर्म सूचक भाषा का प्रयोग किया गया है । इसके अर्थ यह होता है कि हमे अपनी संस्कृति,संस्कार और धर्म की रक्षा करनी है। 

अर्थात आपको अपने धर्म का पालन करना है यदि आप अपने धर्म को छोड़ते है अन्य धर्म के धार्मिक ढोंग करते है तो आप पापी है और आपका सेक्युलरिज्म सबसे बड़ा पाप।

जय हिन्द

© धीरेन्द्र त्रिपाठी - सिद्धार्थ नगर 

 मो . 7607606421

 







 


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