है तू खल अति,
तेरी आँखें छोटी।
तू कद में नाटा,
तेरी नियत खोटी।
तू साँप जैसे आस्तीन में,
तेरी लपलपाती जीभ लंबी।
तू कपटी नराधम,
है अधम अति और दंभी।
भ्रष्ट बुद्धि कर बैठा,
तू मद और उन्माद में।
जो जगाने आ गया,
शेरों को उनके मांद में।
कसना ही अब पड़ेगा,
तेरी नाक में नकेल को।
रोकना ही अब पड़ेगा,
कुटिल तेरे हर खेल को।
न सोंचना हम डर कर,
तेरी पूंछ को सहलाएंगे।
अपने वीरों की लाशों पर,
तुम से हाथ मिलाएंगे।
दंड की नीति अब,
अपनाना ही पड़ेगा।
तेरी महत्वाकांक्षा पर,
अंकुश लगाना ही पड़ेगा।
आज हर एक भारतवासी,
बहिष्कार को आगे आएँ ।
प्रण करें कि चीनी वस्तु,
अब से न हम हाथ लगाएँ।
सौगंध हमें है एक - एक,
शहीद हुए परवानों की।
हम भारतवासी आन रखें,
अपने वीर जवानों की।
डॉ उषा किरण
पूर्वी चंपारण, बिहार