हमें चाहिए क्या?
एक तुलसी चौरा,
एक मंदिर,
जो बहुत अच्छा न हुआ
तो पीपल के नीचे
बना कर चबूतरा
पूज लेते हैं
हम अपने देव
किसी का पूजाघर
न तोड़ने गये कभी।
किसी का घर
न छीनने गये कभी।
हम तो नदी को,
गाय को ,
पंछी को-
सबको मान
देते रहे
सूरज को,
चांद को,
धरती को
माथा नवाते रहे
सबके कल्याण की
करते रहे कामना
फिर भी हम
दुश्मन हैं
कभी कश्मीर से,
कभी पाकिस्तान से,
कभी बांग्लादेश से
निष्कासित होते हैं
हम ही।
हमारा गुनाह क्या है?
आलिमों !
बताओ जरा
क्यों खटकते हैं
हम नजर में
किरकिरी बन कर?
हमारे तीर्थ भी
छीन लेना चाहते हो
और यह सोचते हो
हम तुम्हें भाई कहें?
कुछ भी लिखती हूँ
लड़ने आ जाते
निरन्तर
अब कहां हो?
क्यों बंद मुख हैं
तुम्हारे?
मैं सभी का आह्वान
करती हूँ
दिखाओ देश यह है तुम्हारा
आतंक के घिनौने चेहरे
पर पहला वार
मैंने कर दिया है।
मैं नहीं डरती किसी से
जब ऋषियों की चबा कर
अस्थियां
लगाया ढेर नैमिष में
नहीं हुए भयभीत
रावण से लड़े थे हम
तुम्हारी औकात क्या है
ओ पडोसी।
डा. ज्ञानवती दीक्षित