साहित्यिक  पंडानामा:७९०


भूपेन्द्र दीक्षित


आज हम उन महाकवियों पर अपना ध्यान  केंद्रित  करेंगे,जिन्होंने  मात्र  दो चार कविताएँ  लिखकर गुटबाजी  की सहायता  से स्वयं  अपना महाभिषेक करा लिया है।कवि सम्मेलनों  में  इनके दो चार चेले चपाटे पहले से उपस्थित  रहते हैं  और वाह वाह  के नारों से पांडाल गुंजा  देते हैं ।इनकी सभी कविताएँ  जनता को कंठस्थ हो जाती हैं  और तीसरी कविता  सुनाने की फरमाइश सुन कर ये कोई अश्लील  चुटकुला सुना कर ध्यान  दूसरी ओर मोड़  देते हैं ।कुछ शायर नुमा  कवि जनता के अल्प ज्ञान  का फायदा उठा कर पुराने शायरों  का कलाम सुनाया  करते हैं ।अगर इनके बीच बदकिस्मती से कोई  सच्चा  कवि पहुँच जाए तो ये कांव कांव करके पहले तो उसे भगाने का प्रयास करते हैं।अगर वह न भागा और जम गया,तो इनके गैंग के मुख्य व्यवस्थापक उसको अपने चंगुल में लेने का प्रयास करते हैं।इसमें भी असफल रहने पर अपनी मंडली के लडकों से (हर ऐसी मंडली कुछ ऐसे मूर्ख लडके पाले रहती है ,जिनका काव्य ज्ञान तो शून्य होता है पर शरीर और गले  से मजबूत  होते हैं, ताकि  यदि अश्लील  चुटकुले  सुन कर कहीं  मार पीट की नौबत  आ जाए तो ये मुकाबला  कर सकें  और विरोधी  अच्छे कवियों  की हूटिंग कर उन्हें  बदनाम कर  सकें)उन पर हूटिंग  करा देते हैं ।सुरा और सुंदरियों  के आभा मंडल से ये लोकप्रिय  होने  का भ्रम जाल रचते हैं ।आम आदमी  इसमें  छला  जाता  है।क्रमशः


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