भूपेन्द्र दीक्षित
अक्सर देखता हूं कि जो बड़े-बड़े महाविद्यालयों में लोग बैठे हुए हैं ,उनका साहित्य से कोई बहुत लेना देना नहीं होता ।बहुत कम जगह कक्षाएं चलती हैं और गैस पेपरों के सहारे बच्चे पास हो जाते हैं और ऐसे बच्चे एक आधी अधूरी आकृति की तरह तैयार होते हैं ,जिनके दिमाग में देश की संस्कृति और साहित्य का कोई स्पष्ट नक्शा नहीं होता और भी जहां जाते हैं सिर्फ खल मंडल करते हैं।
मुझे बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि बड़े-बड़े भव्य विश्वविद्यालयों में बैठे हुए हिंदी के महान विद्वानों ने हिंदी का सत्यानाश करने के स्थान पर और कोई कार्य नहीं किया। इनकी शिष्य परंपरा में ऐसे विद्यार्थी तैयार हो रहे हैं ,जिन्हें इस देश की माटी से कोई लगाव नहीं।
अवधी साहित्य का इतिहास देखता हूं तो यही स्थिति दिखाई पड़ती है सिवाय राजनीति के इन डिग्री कॉलेज वालों ने कुछ भी नहीं किया।बात करुं विश्व विद्यालयों के कुछ मूर्धन्य विद्वानों की,जिनकी दृष्टि अवधी की विशाल साहित्य संपदा पर थी।ऊंचे पदों पर बैठे इन तीर्थध्वांक्षों ने कुछ प्रतिभावान शिष्य छांटे ,जो इनके लिए शोध और लेखन करने लगे।धीरे धीरे एक रैकेट तैयार हुआ ,जिसने अवधी की मार्केटिंग आरंभ की और नकारे लोगों को स्थापित करने का कार्य आरंभ किया।जिनका अवधी में कोई अवदान नहीं था वे द्रोणाचार्यों की परंपरा बढ़ा कर एकलव्यों का अंगूठा काटने में जुट गये।बदले में उन्हें पद और पुरस्कार का लालच दिया गया।कुछ ने तो अपना जीवन ही इन द्रोणाचार्यों के चक्कर में तबाह कर लिया ।
इनके इतर एक इलीट वर्ग था,जिसकी नजर इस अवधी संपदा पर थी।उसने धन देकर अपनी प्रशस्ति लिखवाई ।कुछ उधार के लेखक सतुवा पिसान लेकर इनकी विरुदावली लिखने में जुट गये।रेवडियों की तरह पुरस्कार बंटने लगे।
इन लोगों की राह के सबसे बड़े कंटक थे श्याम सुंदर मिश्र मधुप।वे न सिर्फ अवधी पर शोध करा रहे थे , बल्कि नवीन रचनाकारों को प्रोत्साहन देकर अवधी की नई पौध तैयार कर रहे थे।उनके साहित्यिक अवदान की कोई बराबरी नहीं थी।स्वभाव से अत्यंत विनम्र मधुप जी ने अवधी का इतिहास लिखकर इसकी बहुत बड़ी कमी पूरी की।उनकी मजबूत शिष्य परंपरा में डा•ज्ञानवती ने उनके बाद अवधी का ध्वज थाम कर उसे झुकने नहीं दिया है।भले ही आज अवधी के धंधेबाज मधुप जी के अवदान को सायास भूलने का नाटक कर रहे हों, भले ही अवधी के नाम पर पत्र पत्रिकाएँ निकाल कर अपनी रोटियां सेंकने में व्यस्त होकर उन पर एक अंक भी न निकाल सके हों, जब भी आधुनिक अवधी साहित्य के नींव के पत्थरों की बात आएगी मधुप जी याद किए जाएंगे ।