लोग ज़्यादा है ,राशन कम है ,
इस लिए भी मुहब्बत हुई कम है ।
ग़रीबी में बिकता नक़ली माल ज्यादा,
असली की भी अब पहचान कम है ।
हुआ किसान बर्बाद फ़सल पैदा करके ,
मण्डी में उसकी पहचान भी कुछ कम है ।
दोस्ती अब तक़ाज़ा करने लगी ,
आपस में भी विश्वास कुछ कम है ।
भुखमरी ने छीना आँख का आँसूँ भी ,
हुई मौत जब भूख से उसके घर में ,
हुआ उनके दिल में दर्द भी कुछ कम है ।
सवि शर्मा
.....देहरादून