शब्द- शब्द मे सोचा तुमकों, अक्षर -अक्षर याद किया
तुमको मांगा रब से दुआ में, हर दर पे फरियाद किया
मधुर मेरे सपनों की मंजिल, तुमसे बेहतर क्या होगी?
तुमको ही अंतस में पूजा, प्रिय तेरा ही अनुवाद किया
हृदय वेदना के स्पन्दन पर, बस मेरा हो अधिकार प्रिये
मिलन हमारा शाश्वत है, इस-पार हो या उस-पार प्रिये
मधुर मेरे सपनों की मंजिल, तुमसे बेहतर क्या होगी?
तुम जीते तो सफल स्वयंवर, डालूँगी जय का हार प्रिये
मेरे स्वर की तुम सरगम हो, मैं गीत तुम्हारे अधरों का
मन मकरंद बचा रखा है,उपकार है मुझपर
भ्रमरों का
मधुर मेरे सपनों की मंजिल, तुमसे बेहतर क्या होगी?
कूजित कोयल की कुह कू को, संग मिलेगा मधुरों का ।।
शब्द शब्द मे सोचा तुमकों, अक्षर- अक्षर याद
किया ।।
तुमकों मागा रब सें दुवा , हर दर पे फरियाद किया।।....?........................................
मनोरमा सिंह