मेघ गरजते गगन में , बूँद गिरे रसधार
प्यासा मन है बावरा,आ जाओ घर द्वार
बादल छाये गगन में , काली घटा छाई
अंग प्रत्यंग जल उठे , प्रेम अग्न लगाई
बदली बरसी गगन से,अवनि प्यास बुझाई
पपीहे सा तन प्यासा , मन में मस्ती छाई
शीत आर्द्र हवा चली , प्रेम भाव जलाए
तन बदन है सिहर उठा,कौन भला बुझाए
सुखविंद्र खड़ा राह में ,.बाजुएँ फैलाए
आ जाओ आलिंगन में,मन शांत हो जाए
-सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)