चलो आज हम फैसला कर ही लेते हैं,
मोहब्बत अपने सीनों में भर ही लेते हैं।
बनेंगे असहायों की लाठी इस संसार में,
दो कदम उनके साथ हम धर ही लेते हैं।
उठाएंगे मजलूमों की हकों की आवाज,
सुनो! पकड़ इंसाफ की डगर ही लेते हैं।
कब तक अन्याय सहकर सिर झुकायेंगे,
गुनाहगार नहीं हैं, उठा नजर ही लेते हैं।
पीढ़ी दर पीढ़ी वो नेता, हम सेवक रहें,
बदलाव के लिए निकाल डर ही लेते हैं।
आओ भरें हुंकार, काफिला बन जाएगा,
"विकास" ऐसी जिंदगी से मर ही लेते हैं।
©® विकास शर्मा