कल कल करती चलती नदी
अविरत आगे बढ़ती नदी
मुश्किलें आएं हज़ार राह में
डटकर सामना करती नदी
खुद कष्ट सहकर भी सदा
दूसरों का कष्ट हरती नदी
यह नीर नहीं कभी स्वयं संचती
सबको जलजीवन प्रदान करती जीवनदायिनी नदी
आरम्भ में अस्तित्व छोटा था पर
बड़े वेग से यह बहती नदी
आँधी तूफ़ान बाढ़ बवंडर
सब कुछ हँसकर सहती नदी
खेत खलियान की उर्वरता बढ़ाती
सरल विनयभाव रखती नदी
अंत समय में अपने आप को
सागर को समर्पित करती नदी
बिना रुके जीवन में हौंसलों के साथ आगे बढ़ना
कविता में यही सीख देती है नदी
@अतुल पाठक
जनपद हाथरस(उ.प्र)
मोब-7253099710