मत करो ह्रदय विदीर्ण
यह बात समझाऊँ !
प्यास बुझा तप्त धरा की
मन प्रफुल्लित कर जाऊँ ।।
लहलहाये खेत और गुलमोहर
की डाली डाली !
अमलतास की फलियों में पेड़
पर झूला झूल जाऊँ ।।
है हमजोली बादल मेरा दे उपहार
जल का मुझे !
जन मन के जीवन में स्पंदन
मैं भर जाऊँ ।।
तटों को बाँध रहना सिखलाऊँ मैं
सीमा में !
प्रताड़ित करने पर तोड़ सीमा मैं
समझाऊँ ।।
कभी रूकती नहीं जाकर समा जाऊँ
सागर में !
रुकूँ कभी झील बन तो दर्पण धरती
पर बन जाऊँ ।।
रिश्ता तेरा मेरा जन्म जन्मांतर तक
लहराये !
तू सम्मान प्यार दे मुझे जीवन अपना
दे जाऊँ ।।
सवि शर्मा