जोड़ कर रखना मन के तार
न टूटे कभी कोई परिवार
जीवन की आधार शिला है,रिश्तों का संसार
टूट बिखरकर रहने में होता क्या ख़ाक मज़ा है
एकाकीपन तो जीवन की सबसे बड़ी सज़ा है
डांट डपट निगरानी से अनुशासन आ जाता है
निरअंकुशता हो तो जीवन राह भटक जाता है
छिन्न भिन्नता के चक्कर मे बट जाता है प्यार
न टूटे कभी कोई परिवार
जोड़कर रखना मन के तार
आंगन मे दीवार उठी अम्मा ने खटिया पकड़ी
बाबा की छाती आकर खांसी ने कसकर जकड़ी
साथ बैठकर खाने की हसरत अलविदा हुई है
दो चूल्हे होते ही घर से बरकत विदा हुई है
पता नहीं कब आया आकर लौट गया इतवार
न टूटे कभी कोई परिवार
जोड़कर रखना मन के तार
माना ग़ैर ज़रूरी हैं,लेकिन अपने अपने हैं
साथ अगर अपनों का है तो सच सारे सपने हैं
जब सब मिलकर हंसते हैं और सब मिलकर रोते हैं
खुशियां हो जाती है दुगुनी,ग़म आधे होते हैं
अपनों के संग संग हर दिन है एक नया त्योहार
न टूटे कभी कोई परिवार
जोड़कर रखना मन के तार
दो तन मन जुड़ जायें तब एक नया मनुष बनता है
सात रंग जुड़ जायें नभ पर इंद्रधनुष बनता है
बंधकर रहने से ही मोती हार बना करता है
कण कण जुड़ते हैं तब ही आकार बना करता है
अलगावों से रुक जाता है सृष्टि का विस्तार
न टूटे कभी कोई परिवार
जोड़कर रखना मन के तार
भूमिका भूमि......