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एक दिवस मिलने आऊँगी
अपने द्वार खड़े तुम मिलना
1)मुझे पता है तुमने अपने
पलक पाँवड़े बिछा रखे हैं
मेरे सँग जीने के सपने
अंतर्मन में सजा रखे हैं
अपनी आँखों में ऐसा हीं
लेकर प्यार खड़े तुम मिलना
एक दिवस मिलने आऊँगी
अपने द्वार खड़े तुम मिलना
2)सारी उम्र तुम्हारी होकर
रही तुम्हारी और रहूँगी
तुम सागर हो मैं नदिया हूँ
धार तुम्हारी दिशा बहूँगी
जब भी मिलन कामना भेजूँ
कर स्वीकार खड़े तुम मिलना
एक दिवस मिलने आऊँगी
अपने द्वार खड़े तुम मिलना
एक दिवस मिलने आऊँगी
अपने द्वार खड़े तुम मिलना।"
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डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी,पूर्वी चम्पारण
'विश्व साहित्य सेवा संस्थान,अंतरराष्ट्रीय सचिव'
9470235816