मेरे पापा


मेरी आँखो में हरदम मुस्कुराते हो ।
पापा तुम  याद मुझे बहुत आते हो ।


डरकर बचपन में  दौड़ तेरी उँगली पकड़ती थी ।
होती हूँ जब आज भी परेशा तुम मार्ग प्रशस्त कर जाते हो ।
डटकर लड़ना सिखाया था परेशानियों से मुझे ।
चींटी का बार बार गिरकर भी ऊपर चढ़ना दिखाया था ।
डर दूर कर सारे मन के अंधेरे तुम दूर कर जाते हो ।
पापा तुम याद बहुत आते हो ।।


टोफ़ी  का  अनमोल ख़ज़ाना  जेब में रहता हरदम थ।
निकलती जादू की पुड़िया जैसे मेरा ग़ुस्सा काफ़ूर हो जाता था ।
पाकर प्यार तुम्हारा थी मैं बहुत  इठलाती 
वो औरेंज वाली टोफ़ी अब भी मुझे बहुत प्यारी हैं ।
जीवन की मीठी यादों में तुम याद बहुत आते हो ।
हाँ पापा तुम याद बहुत आते हो ।


कभी  रूठ कर जब मैं चुप हो जाया करती थी ।
आँसुओ की अविरल धारा गालों पे बह आती थी ।
तब घोड़ा बन घुमाते मैं ख़ुश हो जाया करती थी।
बिन पूछे कुछ भी मुझसे आँखो में देखकर ही सब ।
मेरे  मन के भाव  जाने कैसे  जान तुम जाया  थे ।
पापा तुम याद बहुत आते हो ।


तेरी वो कुर्सी जो अब मेरी धरोहर है।
पढ़ते थे जिस पर गीता और रामायण।
निराशाओं से घिर कर बैठूँ जब उस पर।
हौसला मिलता तुझसे  आस पास ही मैं पाता ।
जीवन  हर पल में याद बहुत आते हो ।
पापा तुम याद बहुत आते हो ।


सवि शर्मा 
देहरादून 


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