हे इंसान, तेरी यह बडी गज़ब ही फितरत है;
तू तो बस निज स्वार्थ में ही रत है......।
इंसान-इंसान में दूरियाँ हैं बेहिसाब,बेहद...
मतलब के लिए एक होना तेरी फितरत है।।
यूँ तो कभी न निकलते मुख से प्यार के बोल;
कभी निकले भी तो उसमें भी निष्काम भाव नही।
निःस्वार्थ होकर किसी का अपना होकर देख...-
जहाँ बस निश्छल प्रेम, रामराज्य का प्रभाव वहीं..।।
त्याग दे,छोड़ दे भले मानुस यह मतलबीपन...,
मतलब के अनुसार न बदलो अपना मूल स्वभाव।
जिस तेजी से तुम बदलते ,गिरगिट को भी देते मात-
धन्य हो,वन्दनीय हो हे दोगले प्राणी,हे महानुभाव।।
मतलब के लिए क्या से क्या बन जाता है तू इंसान..,
मतलब के लिए भक्त बन पूजने लगता है भगवान।
मतलब के लिए अपनी मूल प्रवृति में करते बदलाव-
मतलब के लिए शत्रु भी मित्र बन जाता है इंसान..।।
किसी से प्रेम करो तो निष्काम,चाह हो तो निष्काम..,
मतलबी,छलिया,दम्भी नही हो सकता कभी सच्चा इंसान।
जो मतलब से ऊपर से उठ,बस निष्काम प्रेम को ही माने-
निष्कपट,निष्काम यही गुण है आदर्श इंसान की पहचान।।
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नेहांश कुलश्रेष्ठ
उज्जैन, मध्यप्रदेश