(गीत)
जाना पड़ा एक दिन
खजाना अपना छोड़ के
क्या मिला मधुमक्खी
तुझे कण कण जोड़ के
उड़ती रही दूर-दूर
पराग की खोज में
शहद तेरा पीने वाले
सोते रहे मौज में
पाया क्या तूने दूर-दूर दौड़ के
जाना पड़ा एक दिन
खजाना अपना छोड़ के
दे ना सकी रसा किसी को
डंक ही चुभाती रही
खा ना सकी एक बूंद भी
ढेर मधु का बनाती रही
पाया तूने कुछ ना इतना जोड़ के
जाना पड़ा एक दिन
खजाना छोड़ के
आ गया एक दिन
फिर शहद का लुटेरा
छोड़ना पड़ा मधुचक्र तुझे
बस चला ना तेरा
मारा तुझे ले गए
शहद निचोड के
जाना पडा़ एक दिन
खजाना छोड़ के
स्वरचित
सुनीता द्विवेदी
कानपुर उत्तर प्रदेश
25/06/2020