मान जा तू चीन ,क्यों भर रहा है
पाप का घड़ा,
शांति से रह नहीं ,सकता क्यों जोड़ ,तोड़ कर रहा,
पहले बिमारी फैला कर दुनिया में
तेरा जी नहीं भरा,
अब हिंसा फैलाकर करना चाहता है क्या,
सब्र का पैमाना अब हमारा भी भरने वाला है,
तेरी गीदड़ भभकियों से भारत न डरने वाला है,
भूल गया जब तूने मुंह की खायी थी,
रण बांकुरों ने हमारे ,तुझको धूल
चटायी थी,
फिर से तू हठधरमी पे उतर आया है,
तेरे ऊपर क्या ,फिर से विनाश छाया है,
हम अगर जिद पर आ जायें तो ,तेरा निशा न रहेगा,
रक्त निर्दोषों का चहुं ओर बहेगा,
अभी वक्त है ,कुछ भी नहीं बिगड़ा,
क्यों भर रहा तू पाप-------
संतोषी दीछित
कानपुर