क्यों पुत्रधर्म का त्याग किया


मैं तुमको अपना कर लूँगा


मैंने लिखी कहानी दर्दभरी
जिसके पन्नो को पढ़ न सके
आवरण मेरा जब जीर्ण हुआ
बिखरे पन्नों को चुन न सके
बन नीलकंठ मैंने तेरे लिये
हरपल जीवन विषपान किया
कमजोर हुए जब पग मेरे
मुझे बीच डगर में छोड़ दिया!!!


चटकी अरमानों की लकड़ी
लपटें जब ऊंची उठने लगी
स्वाहा कर हर एक रिश्ते को
धृत बेगाना बन तुमने दिया
तुम भूलके अपना पुत्र धर्म
अवनति के गर्त में जा बैठे
जिस माँ की कोख़ से जन्मे थे
उस माँ की कोख़ लजा बैठे ,


मैं थका नहीं मैं झुका नहीं
समझौता मैंने किया नहीं
अपनों के सुख के लिये कभी
दुनियाँ के ग़मो से डरा नहीं
जब आया वक्त सहारे का
क्यों तुमने चेहरा मोड़ लिया
जीवन की अंतिम संध्या में
क्यों पुत्रधर्म का त्याग किया,


जीवन के थपेड़ों से डरकर
नैया जब डगमग करने लगे
कमजोर भुजा पतवारों की
निष्ठुर प्रकृति से डरने लगे
विस्मृत कर पिछली बातों को
आ जाना जीर्ण कुटी में फ़िर
तुमको बाहों में भरकर मैं
सब ताप तुम्हारे हर लूंगा ,
मैं तुमको अपना कर लूगाँ....


कुसुम तिवारी झल्ली


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