क्यों न हुई हमसे प्रीत अब तक

 



रास्ता मुस्कुराया 
मौन-सा हुआ उदास 


महसूस हुआ चलते-चलते
आवाज दे रहा कोई हमें


राह में चलते रुके कदम
कोशिश की सुनने की


लगा जैसे पुकार रहा कोई
ठहर गए हम उसी पल


सुनी उसकी मौन धड़कन 
जैसे कह रही मन की बात


रास्ता बोल पड़ा अनायास 
रोज गुजरते हो हम पर से 


जरा-सा अपनापन न हुआ 
हर पल बाट जोहते तुम्हारी 


पहचानते है हर कदम तुम्हारा
यूँ ही मौन-से गुजर जाते हो 


है ये कैसा संग तुम्हारा
एक दिन भी न गुजरों तुम तो


भीग जाती अँखियाँ हमारी
क्यों न हुई हमसे प्रीत अब तक


जानपहचान जब सदियों पुरानी।
है न स्वप्न...!
©सपना पारीक 'स्वप्न'


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