चन्द्र भूषण मिश्र "कौशिक"
पूर्वांचल अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में भले न हों पर उत्तरप्रदेश और बिहार तो देश के महत्वपूर्ण राज्य हैं फिर यहा के नागरिकों से सौतेला व्यवहार किसी राज्य द्वारा किया जाना कैसे नैतिक हो सकता हैं ?
अब सवाल उठता हैं कि क्या पीड़ित के पक्ष में खड़ा हो केंद्र किसी राज्य से इस पर सवाल पूछ सकती है ?
मुझे तो नहीं लगता हैं कि पूर्वांचलीओं (मजदूरों) के पक्ष में खड़ा हो केंद्र कभी यह सवाल करेगी भी ----
काहे की lockdown* का फैसला तो केंद्र का था इस अवसर को राज्यों ने तो अपने हक में केंद्र को बदनाम करते हुए एक स्वार्थी राजनैतिक खेल के रूप में खेल लिया जिसका पूर्वानुमान शायद केंद के पास भी पहले से न था --अब हुए हादसों से नजरें मोड़ मल्हम पट्टी के सिवाय कोई अन्य विकल्प नहीं बचता हैं ।
काहे की केंद्र सरकार ने यह नहीं सोचा होगा की उसके आपदा राहत योजना का ऐसा भयावह असर पूर्वांचली जनता को भुगतना पड़ेगा क्यों की केंद्र सरकारें कभी पूर्वांचली जनता को उनकी जरूरतों को गंभीरता से समझा बुझा ही नहीं केंद्र की इसी निष्क्रियता से आदमखोर हुए अन्य राज्य अपने मूल कर्तव्यों का निर्वहन करना तो दूर पूर्वांचली जनता को उनकी जरूरतों को अपना मानना व स्वीकार भी ऊचित न समझे ।
आपदा विशेष के फैसले अकस्मात ही होते हैं , फिर इसमें नया क्या था अगर राज्य सरकारें चाहती तो देश की सुरक्षा के लिए जो जहां है वहीं रहे का पालन करती.. । इसमें थोड़ी कठिनाई होती या हो सकता है केंद्र के सहयोग के बावजूद राज्यों पर थोड़ा आर्थिक अधिभार पड़ता पर समस्याएं इस कदर विकृत रूप न होतीं लेकिन यहा तो उल्टा हुआ राज्य सरकारों ने भय का माहौल बना मधुमखियों के शहद पर कब्जा कर उन्हें उनको हक अधिकार से अचानक वंचित कर मौत के मुंह में ही ढकेल दिया ।
राज्य सरकारों नें अपने स्वार्थ की रक्षा लिए केंद्र को दोषी ठहराया और मजदूरों को बेहाल कर दिया ।
मानो इन मजदूरों से राज्य सरकारों का कोई वास्ता ही न हो इस व्यवहार से अपने पाँव के नीचे जमीन खिसका देख एक-एक गांव और शहर से गुजरता वह मजदूर अनजाने में अपने साथ वो जलजला और कोरोना आपदा भी लेकर इधर उधर दौड़ने भागने लगा जिसके रोकथाम के लिए यह फैसला हुआ था ।।
कोरोना आपदा में भागने -भगाने को लेकर जो आर्थिक ,राजनैतिक खुनी खेल हुआ सो हुआ अब तो उसके आगे की कहानी शुरू हो गई हैं जो रोजगार हरण की साजिश के रूप रेखा में मुखरित हो रही हैं ।
मुझे तो नहीं लगता कि देश के प्रधानमंत्री जी व उनके सलाहकारों को अब तक यह नहीं समझ आया होगा की आखिर खेल क्या हैं ? अगर वास्तव में नहीं समझ आ रहा तो केंद्र सरकार की दूरदर्शिता पर शक होना सौभाविक हैं ।
भारत में विपक्ष का काम हैं केंद्र को दोषी साबित कर अपने स्वार्थ की रोटिया सेकना..वो सेक रही हैं
देश में नकारात्मक सोच धारियों या कह ले विकास विरोधियों का काम हैं भारत को अस्थिर करना वो अपने काम में लगी हैं
*रोहिग्या , जिहादी , जमातीओं का जो मकसद हैं की वो दीमक बन देश के संसाधनों का उपभोग करे व देश विरोधी धर्म गढ़ते रहे वो भी अपना काम बखूबी कर रहे --
मुर्ख तो सिर्फ वो पूर्वांचली हैं जो देश के लिए मरते मिटते रहते तो हैं पर उनकी पीड़ाओं पर न केंद्र न कोई राज्य ही गंभीर होती हैं सब इनका उपभोग करते हैं और इनके अवसर की लूट अपना पेट भरते हैं ।
केंद्र सरकार को चाहिए की श्रम शक्ति का दुरुपयोग रोके नही तो अगला खेल होगा
रोहिंग्या, जिहादी , बंगलादेशी मजदूर बन कर देश के श्रम शक्ति के बीच घुस देश के लिए और हानिकारक बन जायेगे और पूर्वांचली एक बार फिर अपना रोजगार खो सिर्फ ठगा सा रह जायेगे ।।.
या कह ले एक बार फिर पुनरावृत्ति होगी चंद भाड़े के लोग पुरे पूर्वांचली समाज का इतिहास तय कर उनके हक और हिस्से का अवसर बेच खरीद लेगे ।।
( लेखक पूर्वांचल राज्य जनमोर्चा के संस्थापक / संरक्षक हैं)
क्या पूर्वांचलीओं को भगा कर उनके हिस्से के रोजगार पर अब जेहादी ,घुसपैठी ,रोहनिया बंगलादेशी व कमीशन खोर कम्पनियों में मजदूर बन घुसपैठ करने लगे ?