कवियों के कुल वंश में, ऐसा खरपतवार । जो कविता को नष्ट कर, उपजाए व्यभिचार ।।


दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह के तत्वावधान में राष्ट्रस्तरीय ऑनलाइन काव्य गोष्ठी 3 का आयोजन


ब्यूरो रिपोर्ट
देहरादून । दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रस्तरीय ऑनलाइन काव्य गोष्ठी-३ अत्यंत हर्षमय वातावरण में सम्पन्न हुई। गोष्ठी के गौरवशाली मंच पर संरक्षक  शिवेश्वर दत्त पाण्डेय, अध्यक्ष  बिपिन पाण्डेय, मुख्य अतिथि  विनय विक्रम सिंह "मनकही" की वरद उपस्थिति से आयोजन अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ।
       गोष्ठी का सशक्त व प्रवाहपूर्ण संचालन आशा उमेश पाण्डेय द्वारा किया गया। 
         गोष्ठी का आरम्भ कवयित्री  आशा उमेश जी द्वारा माँ वाणी की स्तुति से हुआ। तदनन्तर  रचना उनियाल जी की घनाक्षरी, "शिशु देह का सृजन ,प्रसू तन अंतर्तम" व सरसी छंद आधारित गीत, "गौरैया भी बैठ डाल पर सेक रही है भोर।" इन पंक्तियों से माहौल भावलय से परिपूर्ण हो उठा। कौशल बंधना जी द्वारा मेरे गांव की मिट्टी, "बड़ी खुशबू है जिसमें,
वो मेरे गांव की मिट्टी है।
दुआएं लाखों हैं जिसमें,
मां के पांव की मिट्टी है।।" से सशक्त संदेश देकर सभी को सोचने पर विवश कर दिया,  रीना मिश्रा जी द्वारा "कोरोना ने तबाही का
दिखाया है नया मंजर,
कसाई की तरह घोंपा
हमारी पीठ पर खंजर,
क‌ई परिवार हैं उजड़े
सभी बे मौत हैं मरते,
न जाने कब तलक देखो
बनेगा देश फिर सुन्दर।" 
इस प्रस्तुति से सामयिक परिस्थितियों का दृश्य उपस्थित किया। अतुल पाठक जी के द्वारा प्रस्तुत, "उनके द्वारा पठित, "नया काम कोई भी करता 
श्री गणेश है नाम वो लेता,
सबसे पहले पूजा जाता 
वह है रिद्धि सिद्धि के दाता, तथा, "लगी आज होड़ बादल से कि,
दीवाना वो या हूँ मैं
जान~ए~जाँ की ख़ुशी पे दिल, लुटाता वो या हूँ मैं।।" ऐसी मोहक मनमुग्धकारी रचना से सबको अभिभूत कर दिया। आदरणीय
बलवान सिंह कुंडू जी द्वारा सिपाही पर प्रस्तुत, "सबल देह  निर्भय हृदय,
न विश्राम  न आश्रय,
बीते पल -पल कड़े पहरे में,
तपस्वी सी मर्यादा के घेरे में" पंक्तियाँ मन को छू गयीं। उनकी दूसरी रचना, नन्ही सी परी की, "सुबह सुबह मेरी परी ने मेरा गाल थपथपाया,
पापा -पापा जल्दी उठो कहके कुछ तुतलाया" इन पंक्तियों ने अदभुत काव्यचित्र अभिव्यक्त किये,  अरुण दीक्षित जी ने, "कवियों के कुल वंश में, ऐसा खरपतवार |
जो कविता को नष्ट कर, उपजाए व्यभिचार |
उपजाए व्यभिचार, शब्द होते रंगीले |
पायें लंबी वाह, सुनाकर अक्षर नीले |
कहता मैं "अनभिज्ञ",मूल्य हैं बस छवियों के |
ऐसे भी हैं मंच, आजकल कुछ कवियों के |" जैसी कटाक्ष करती सन्देशसिक्त कुण्डलिया से अभिव्यक्ति दी,  पूनम दुबे वाणी जी की, "तुमको मांगा है अपनी जिंदगी के लिए।
तुमको चाहा है अपनी हर खुशी के लिए।।" के मनमुग्धकारी पाठ से सबको आह्लादित कर दिया व संचालक आशा उमेश पाण्डेय जी द्वारा पठित भोजपुरी गीत, "केकरा से कही रामा उडली चिरईया हो ,
गाँव हमारा छोड देहली भईली पराई हो।।" के सुमधुर पाठ से आयोजन अति मर्ममय भावप्रवाह में डूबने उतराने लगा। मुख्य अतिथि विनय विक्रम सिंह "मनकही" द्वारा करवा चौथ पर्व पर सिंहावलोकन कुण्डलिया प्रस्तुत की गयीं, "महकी मधुमय मदनिशा, मनहर मंगल पर्व।
पर्व प्रेम मांगल्य का, मंत्रमुग्ध जन सर्व।।
मंत्रमुग्ध जन सर्व, सुहागिन मंगल गावैं।
गावैं मुदित स्वरूप, पिया को अतिशय भावैं।।
भावैं सुखकर रीति, निरखि विधु हरवधु चहकी। 
चहकी मन रसधार, पिया के अंगन महकी।।" 
समारोह के अध्यक्ष डाॅ बिपिन पाण्डेय जी द्वारा प्रस्तुत , "कौआ बोला व्यर्थ में, मैं जग में बदनाम।
वाणी कर्कश या मधुर,देना प्रभु का काम।।" दोहे व कुण्डलिया छन्द से सबको भावविमोहित कर दिया, उन्होंने विनय विक्रम सिंह जी द्वारा प्रस्तुत सिंहावलोकन कुण्डलियों को अभिनव प्रयोग बताया व अन्य कवियों को काव्य रचना के विविध अंगों से परिचितम कराया। 
       गोष्ठी का समापन संरक्षक श्री शिवेश्वर दत्त पाण्डेय के वरद वक्तव्य से सम्पन्न हुआ।


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