कविता


** कविता लिखना ऐसा है! 


    जैसे अपनी आत्मा को 


दो जून की रोटी खिलाना  !!


कविता लिखना ऐसा है  !


जैसे उसको देखते रहना 


देर तक बाल संवारते हुए 


और भीग जाना उसके ज़ुल्फ़ के 


झटकने से !!


कविता लिखना ऐसा है  !


खुद के समुन्दर में डूब जाना 


न तैरकर पार करना 


न ऊपर आना  !!


कविता लिखना ऐसा है  !


जैसे तमाम सीमाओं को तोड़कर 


बहुत दूर निकल जाना  


और फिर कभी वापस न लौटना  !!


कविता लिखना ऐसा है  !


जैसे किसी के ज़ख्म पर नरम 


हाथों से बर्फ का एक टुकड़ा रख देना  !!


कविता लिखना ऐसा है  !


जैसे खुद को आईने के सामने 


रखकर रूह से अलग कर लेना 


और अपने चेहरे पर लगे 


सारे परतों को उतार फूकना  !!


कविता लिखना ऐसा है  !


जैसे गाँव की पगडंडियों पर 


छोटे बच्चों की तरह भागना 


और साथ-साथ साइकिल के 


पुराने टायरों को भगाना  !!


कविता लिखना ऐसा है  !


जैसे तुम्हारी तलाश में निकलना 


और इस बात से डरना 


की कहीं तुम मिल न जाओ 


ये तलाश खत्म न हो जाये  !!


कविता लिखना ऐसा है  !


जैसे रास्तों को ही मंजिल मान लेना 


और एक ही रास्ते पर पूरी 


उम्र गुज़ार देना


कविता लिखना ऐसा है.....!!! 


डाॅ0 अनीता शाही सिंह 


इलाहाबाद (प्रयागराज) 


24/6/2020


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