उस मां के दर्द को
क्या पहचाने गा रे तू इंसान
जो तूने उस भूखी मां को
फल में बम मिलाकर खिलाया है
उसके मुंह को जख्मी बनाया है
तेरा तो वजूद ही पत्थर का बन गया है
उस मां के दर्द को ना समझ कर
तूने अपने छिपे शैतान को
फिर से जगाया है
उस मां की भूख का
तूने फायदा उठाया है
फायदा उठा कर तूने
उसको और उसके बच्चे को
कफ़न उड़ाया है
उस जानवर ने तुझ पर
भरोसा करके अपने अंदर के
इंसान को दिखाया है
जल जाने के बाद भी
उसने किसी को
नुक्सान ना पहुचाया है
तीन दिन तक भूखे पेट में
तड़पकर आंसू बहाया है
खुद को और अपने बच्चे को
स्वर्गवास कराया है
उस भूखी मां को मारकर
तूने इंसान नाम को ओर
कर्ज में डुबाया है
हे इंसान तेरी ही बुराई ने
कभी कोरोना तो
कभी तूफान को बुलाया है
अभी भी मौका है
सुधर जा हे इंसान
नहीं तो ये कालचक्र
फिर से तेरे सिर पर मंडरायेगा।
राघव मिगलानी
(फार्मेसी विधार्थी)
सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)