झाँसी की रानी (लक्ष्मीबाई)

मोरोपंत ताँबे भागीरथीबाई
की  परम  दुलारी थी
दूर फिरंगी को करने की 
उसने मन मे  ठानी थी
छुड़ा दिये दुश्मन के छक्के
आजादी की परम दिवानी थी
परम वीरांगना वो 
झाँसी वाली रानी थी।


हुँकार भरा गुँजा गर्जन
रण बीच चमकी थी तलवारें
मानो घन बीच चमकती दामिनि थी
नरमुंडों की हो रही थी बरसातें।


हो निर्निमेष दुश्मन था खड़ा
नही शब्द बचे थे कहने को
बन ज्वाला धधक रही थी रानी
रिपु दल को स्वाहा करने को।


धर रुप कालिका काली का
रण भूमि मे अरिमर्दन करती
छु सका न रिपुदल जीते जी
अरमान मिट गये सीने में
हो गयी अमर जनमानस मे
बन गीत अमर गाथाओं में
वो परम विदुषी वीरांगना
झाँसी वाली  रानी थी
वो झाँसी वाली रानी थी


मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर


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