जीवनसाथी

       



  डॉ सरला सिंह "स्निग्धा"      
            पूर्वी उत्तरप्रदेश गांवों का प्रदेश कहाजा सकता है। यहां गांव अधिक और शहर कम हैं।जो शहरी इलाके हैं उनके अधिकांश बाशिंदे  गांव से ही जुड़े हुए हैं।आज भी गांवों में आदर्शों की खेती लहलहाती नजर आती है। संवेदना
भावुकता ,समर्पण और त्याग यहां के लोगों में रचा बसा होता है। घर टूटने या तलाक जैसे किस्से यहां किस्से ही होते हैं।
          पूर्वी उत्तरप्रदेश के जौनपुर में मेवाराम नाम के एक बहुत बड़े जमींदार थे। सैकड़ों बीघा खेती के वे इकलौते मालिक , बड़ी सी कोठी दर्जनों लोग उसकी देखभाल करने के लिए वहां नियुक्त थे। उनके पास अथाह धन सम्पत्ति थी।
वे हर वर्ष माघ मेला नहाने इलाहाबाद जाते और गरीबों को कम्बल भोजन आदि बंटवाते थे। उनको बस एक ही बात का कष्ट था कि उनकी शादी हुए सोलह वर्ष बीत रहे थे मगर
उनके कोई संतान नहीं थी। वहीं के एक बुजुर्ग ने मेवाराम को सलाह दिया,
    "मेवाराम जी आप एक काशी जाकर बाबा विश्वनाथ का दर्शन करिए तथा वहीं के पंडितों से कोई धार्मिक अनुष्ठान करवाइए।आपका मनोरथ भगवान अवश्य ही पूरा करेंगे।"
   "ठीक है चाचाजी जैसा आप कह रहे हैं वैसा ही करूंगा।" मेवाराम ने कहा।
       उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर जाकर वहां के पंडितों सेअनुष्ठान करवाया, गंगा जी जाकर सभी गरीबों को वस्त्र दिया तथा भोजन कराया। और ईश्वर की दया से उसी साल उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ। मेवाराम की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। उन्होंने खूब धूमधाम से उसकी बरही मनायी।ग्यारह गांव के लोगों को भोजन कराया तथा गरीबों में वस्त्र बांटे थे। 
               बच्चे का नामकरण किया गया और पंडित जी ने पूछा," श से नाम रखना है,अब आप उसका नाम बताइए?
मेवाराम ने पहले तो पत्नी की ओर देखा फिर उनकी सहमति लेकर बोले,"भगवान शिवजी की कृपा से इसका जन्म हुआ है अतः उन्हीं के प्रसाद के रूप में  इसका नाम शिवप्रसाद।  रखा जाये।"मेवाराम ने  कहा
        और पंडितों ने उस बच्चे का नाम रख दिया शिवप्रसाद। घर के लोग उसे शिव कहकर बुलाते थे।
       ‌धीरे धीरे शिव बड़ा होने लगा। पांच साल का पूरा होते ही उसका नाम लिखवा दिया गया परन्तु गुरु जी घर आकर ही उसे पढ़ाते थे। इतने प्यार दुलार और वैभव में शिव का मन पढ़ने में थोड़ा कम ही लगता था।अभी आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था कि उसके मां बाप उसके लिए रिश्ता खोजने लगे । मेवाराम और उनकी पत्नी जल्दी से जल्दी उसका विवाह कर देना चाहते थे। उनको अपनी बहू देखने की बहुत ही
लालसा थी।
    खोजते खोजते एक लड़की पास के गांव में मिल गई। वह वहां के जाने-माने जमींदार रामनरेश की बेटी थी और नाम था पार्वती।घर के लोग उसे पारो कहकर बुलाते थे।पारो अभी पांचवीं कक्षा में पढ रही थी लेकिन वह बोलने चालने में बहुत ही होशियार थी। सुंदर तो इतनी थी कि उस बच्ची के चेहरे पर से नजर ही नहीं हटती थी। मेवाराम ने रामनरेश के यहां संदेश भिजवा दिया और दूसरे दिन वे रामनरेश के घर पर मिठाई ,फल व उपहार आदि लेकर रिश्ता पक्का करने पहुंच गये।वे इतना अच्छा रिश्ता हाथ से निकलने नहीं देना चाहते थे। 
    भाई साहब मैं अपनी बेटी का रिश्ता आपके बेटे से अच्छा कहां पा सकता हूं ।
    अरे नहीं भाई साहब मुझे भी आपकी बेटी से अच्छी बहू दीया लेकर ढूंढ़ने से भी नहीं मिलती।
       सभी लोग हंस पड़े। तय हुआ कि अभी शादी कर देंगे और गौना करेंगे पांच साल के बाद। खूब धूमधाम से शादी हुई। दोनों ही परिवार ने इस शादी को यादगार बनाने में कोई
कोर कसर नहीं छोड़ी।
        इन पांच सालों में बहुत कुछ बदल चुका था। समय अपने ही रफ्तार से चलता जाता है और परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जमींदारों की जमीनें कौड़ियों के भाव सरकार ने ले लिया दूसरे शब्दों में हड़प लिया भी कहा जा सकता है।अब जमींदारों को अपने शानो-शौकत का दिखावा करने के लिए भी अपनी जमीनें बेचनी पड़ रही थी। धीरे-धीरे वे अन्दर से खोखले होने लगे थे।
        पांच साल बाद शिव का गौना हुआ। इस समय शिव  इण्टर करके पिता के काम में हाथ बंटाने लगा था। पार्वती ने भी हाईस्कूल की परीक्षा दी थी लेकिन उसका परिणाम अभी तक घोषित नहीं हुआ था। लगभग एक महीने के बाद जब परिणाम घोषित हुआ तो पार्वती का नाम वहां के अखबारों में छपा हुआ था। उसने पूरे पांच जिलों में टाॅप किया था। अबतो मेवाराम और उनकी पत्नी तुलसी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे।पूरे गांव में मिठाई बांटी तथा दरवाजे पर दिन भर बाजा बजवाया गया।
      रात में शिव उपहार लेकर पारो के पास गया।वह उसकी तारीफ करते हुए बोला,
          "गांव में मेरे दोस्तों ने कहा, "कहां भाभी इतनी तेज और कहां तुम इतने बुद्धू। तुमको शर्म नहीं आती है?"
"फिर?"पारो बोली।
"फिर क्या? मैंने भी कह दिया कि इसमें मेरे शर्माने की बात कहां आती है ?शर्माना तो उसके पिता जी को चाहिए जिसने इतनी होशियार लड़की की मेरे जैसे बुद्धू से उसकी शादी कर दी।"
      पारो ने शिव के मुख पर उंगली रखते हुए कहा,"आज के बाद अपने को कभी भी बुद्धू मत कहिएगा।मेरे लिए आप से अच्छा और बुद्धिमान दुनिया में कोई भी नहीं है।"
  शिव का प्यार अब पारो के लिए दुगुना हो गया था।
     दूसरे दिन सास-ससुर ने पार्वती से उसके आगे की पढ़ाई के लिए पूछा तो वह खुशी से झूम उठी। ऐसे सास ससुर बहुत ही कम होते हैं। 
     मेवाराम ने उसके आगे की पढ़ाई की पूरी व्यवस्था कर दी थी। शिव उसे कालेज छोड़ता और फिर घर ले आता। घर का पूरा काम संभालते हुए भी इण्टर में फिर से टापर लिस्ट में
उसका नाम आया। सास ससुर ने फिर से पूरे गांव में मिठाई बंटवाई।
   " बेटा अब तो तुम्हें  बनारस शहर के किसी कॉलेज में या यूनिवर्सिटी में  पढ़ने के लिए जाना होगा । ऐसा करते हैं कि तुम्हें वहीं पर हाॅस्टल दिला देते हैं। तुमको कोई परेशानी नहीं
होगी।" सास ने पार्वती से कहा ।
    " पर मां आप तो यहां अकेली परेशान हो जायेंगी। मुझे हॉस्टल नहीं चाहिए।मै रोज यहां से जाऊंगी और दोपहर तक घर पहुंच जाऊंगी। आपके बिना मैं पढ़ ही नहीं पाऊंगी।"
पारो ने कहा।
     सास को अपनी बहू साक्षात् देवी नजर आ रही थी। अब
शिव रोज उसे विश्वविद्यालय लाता और लेजाता। बीएससी के अन्तिम वर्ष की परीक्षा अब नजदीक आ रही थी । अंतिम वर्ष में एप्लाइड फिजिक्स की परीक्षा थी,जिसे आज भी बहुत कठिन माना जाता है।और इधर पारो की डिलीवरी डेट भी नजदीक आ रही थी। जिस दिन परीक्षा होनी थी उसके एक दिन पहले सुबह के तीन बजे घर में ही एक बेटे को जन्म
दिया तथा दूसरे दिन परीक्षा देने आ गई।लोग उसकी हिम्मत देखकर दंग थे।
           एक महीने बाद जब रिजल्ट आया तो सभी चकित रह गए थे, पार्वती ने पूरे विज्ञान संकाय में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। इसी तरह से उसने एमएससी, फिर पीएचडी की पढ़ाई पूरी की।
       उसका चयन जौनपुर के डिग्री कॉलेज  में प्रिंसिपल के पद पर हो गया। इसी बीच वह तीन बच्चों की मां बन चुकी थी। हालांकि उन बच्चों को संभालने का काम उसकी सास तुलसी देवी ही करती थीं।
            उसी डिग्री कॉलेज में शिव का चयन भी क्लर्क के पद पर हो गया। दोनों अपने घर से ही आया जाया करते थे। पार्वती अपनी सास की मदद वैसे ही करती जैसे पहले किया करती थी। धीरे-धीरे उनके बच्चों की भी पढ़ाई पूरी हुई नौकरी लगी और शादियां हो गयीं। रिटायरमेंट के बाद दोनों गांव की खेती संभालने लगे। उनका प्रेम आज भी ज्यों का
त्यों है । लोग उनकी जोड़ी को एक आदर्श जोड़ी कहते हैं।


डॉ सरला सिंह "स्निग्धा"
दिल्ली


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