"अगर किसी बात के खतम हो जाने के बावजूद आप उसको बार - बार सोच रहे हो, तो इसका मतलब है उसमें कुछ गलत हुआ है" यह बहुत पहले डैडी ने सिखाया था।
बात तब की है, जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी। एक बार हम चार - पांच सहेलियों सरोजनी नगर शॉपिंग करने गईं । वापिस आते वक़्त एक बजुर्ग, जिसकी उम्र लगभग 60 वर्ष के करीब थी, ने हमें रोका और चाय के पैसे मांगे। उन्होंने अच्छे कपड़े पहन रखे थे और अच्छे घर के लग रहे थे। हम सब अनसुना कर आगे बढ़ गए। मेरा मन हुआ कि उन्हें चाय के पैसे दे दूं तो मेरी सहेलियों ने मुझे अक्ल दी कि बहुत से बजुर्गों की आदत होती है कि परिवार को नीचा दिखाने के लिए वो इधर उधर से पैसा मांगते हैं ताकि बच्चों की बेइज्जती हो। यह ज्ञान पा कर मैं भी बिना किसी अफसोस के आगे बढ़ गई।
आदत मुताबिक रात को डैडी को यह वाकया भी सुनाया। सुन कर थोड़ा दुखी हो कर डैडी बोले, "अगर तू चाय के पैसे दे भी देती तो क्या हो जाता?"
वो दिन बहुत बड़ी बात सीखा गया l
उस दिन से लेकर आजतक, कोशिश यही रहती है कि जब भी मुमकिन हो दूसरों की मदद करो। किसी बात को लेकर बाद में यह सोचना न पड़े कि कहीं ऐसा तो नहीं था ....।
मेरे पापा
साध पाऊँ
लक्ष्य मैं अपना,
जगाया मुझमें ये
आत्मविश्वास !
बीते पल हैं
सुखद स्मृतियाँ,
समेटे हैं खुद में
खूबसूरत अहसास ! !
स्नेह से मुझको
बड़ा किया,
खुशियों से दामन
मेरा भरा !
सही – गलत /
छोटे – बड़े,
हर फैसले पर
मार्ग प्रशस्त किया ! !
पंख दिए
मेरे सपनों को,
और अनंत आकाश
उड़ने के लिए !
असफलता में
दिया भरोसा,
बने कवच
वार सहने के लिए ! !
छूती हूँ आज भी
जब नए मुकाम,
तब वो...
मंद–मंद मुस्काते हैं !
आँखों से,
मुस्कुराहट से झोली,
आशीर्वाद से
भर जाते हैं ! !
अंजु गुप्ता