ओढ़कर नींद की चादर
जी उठती हैं कुछ स्त्रियाँ
नींद में वो बेखबर नहीं
बल्कि बाखबर होती हैं।
कभी सपने सजाना
कभी खुद से बतियाना
कभी पलकों के कोरों पे
शबनम बिछाना,
कई बार नींद और रात
रात और लड़की
लड़की और दुख
दुख और जीवन
सब हो जाते हैं
गड्डमड्ड या फिर
एकसार।
चाँद ,तारे दूर बादलों
के संग आँख मिचौली
दुनियाँ की भेदती नजर से
बचती लड़की
चादर में उलट पलट कर
देखती है खुद को,
फिर ढेर सारे रंग ,ख्वाब
और विश्वास लेकर
सो जाती है वो।
साधना कृष्ण