हर अस्त से निकलता एक नया अरुणोदय 

 



ये मेरी जिंदगी का आख़री दिन........? 
रूह की गहराई तक, लौटकर दिमाग़ को 
दस्तक देता.. कचोटता यह क्रूर सवाल!  
जवाब पता नहीं किसी को भी......


शिद्दत से कोशिश की इस विषैले सच का
सामना करने की, उसे स्वीकारने की....ओहह!
घनघोर अंधेरे जंगल में भटका हुआ इंसान
न रास्ता..न उम्मीद..न रौशनी का कोई सुराग!
ह्रदय को छू लेती मौत की कविताएं..गज़लें
दार्शनिक बातें, रौंगटे खड़े करती वह भगवदगीता 
नैनं छिंदन्ति शस्त्राणि...नैनं दहति पावकः ....
पर आज..!आज कहाँ गयी मेरी सकारात्मक सोच? 
जीने की वह उत्तुंग लालसा... जबरदस्त ईच्छा शक्ति...
ओह्ह सब विफ़ल... सब असफ़ल...!


कल फिर सूरज दश दिशाओं को जगमगाएगा 
पंछी, फूल, पौधे, पत्ते, नदियाँ, रास्ते...मंजिलें
चाँदनियों के साथ चंद्रमा आकाश में चमकेगा
जैसा आज था, कल भी सब कुछ वैसा ही होगा
सिर्फ मेरा आज विलीन हुआ ....'था'.... में 
जिंदगी कम्बख़्त रुकेगी नहीं... मेरे लिए भी
अतिविशाल पृथ्वी पर बस्स एक और मौत...!
कोरोना से लड़ते हुए मौत को गले लगाते
न जाने कितने जीवन...व्यर्थ.. अर्थहीन
जीवन का... एक अस्तित्व का दर्दनाक अंत!


हर अस्त से निकलता एक नया अरुणोदय 
नए रूप... नए आभूषण... नए परिवेश में 
फिर जन्म लेती नई कहानी, नए अंत के लिए
जन्म-मृत्यु के इन्हीं फेरों में घिरा हर इंसान 
फिर नया इंसान ....!


मनीषा यशवंत 


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