हमार बाबुजी

त्याग,तप के रउआ हईं‌ मूर्ति
भोर से सांझ ले घर‌ के जरूरत
के करिलें पूर्ति।
समस्या से कभी न मानेनि हार,
लाखों में एक बाबुजी हमार।
 
राउर कठिन परिश्रम देखले बानि हम,
विपरीत परिस्थिति में भी
रउआ कभी ना कइनि ग़म।
अदम्य साहस से बनइनि ओकरा के अनुकूल,
हमनि के जीवन में बिछइनी सुख के फूल।
हमार बाबुजी।


    -- विनोद--


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