ज्ञान विज्ञान संस्थान के तत्वावधान में आज एक सरस काव्य गोष्ठी ड्युओ वीडियो ऐप पर गीतकार सच्चिदानंद तिवारी शलभ की अध्यक्षता में सम्पन हुई.
कवि सम्पूर्णानन्द द्विवेदी का गीत- मेरे यार जुलाहे, इस कार्यक्रम का वह गीत था, जिसने सहधर्मा काव्यात्माओं को भरपूर रससिक्त किया.
विदुषी, लेखिका और कवयित्री डा.
ज्ञानवती दीक्षित ने ठेठ ग्रामीण अवधी में जो स्वरचित लोकगीत गाया, उसने बरबस ही कर्णप्रियता का प्रतिनिधित्व किया.
व्यवसाय से अध्यापक कवि तुषार मिश्र ने दो छंद पढ़े. "रोते लाल को खिला के प्यार से दुलारती," तथा लाकडाउन में स्कूलबंदी से उपजे, निजी विद्यालयों के शिक्षकों को अवेतन के कारण जो आर्थिक कष्ट है, उसका बखान इन शब्दों में किया- "सब्जी वाला ठेला लिए बेचारे हैं ढो रहे." आपने एक गजल भी पढ़ी.
काव्य गोष्ठी के विशिष्ट अतिथि तथा वरिष्ठ कवि विनोद कुमार गुप्ता भावुक जी ने देश की वर्तमान परिस्थिति में राजनीति को संदेश देते हुए कहा-
"अलग- अलग मत राग अलापो,"
इस आयोजन में दिल्ली की कवयित्री केशी गुप्ता,उन्नाव के भ्रमर बैसवारी और सीतापुर के अरविंद सिंह मधुप, तकनीकी कारणों के चलते मात्र कुछ समय के लिए ही जुड़ सके.
हिंदी समालोचना के जाने माने कवि और फेसबुक के अंतर्गत पंडानामा के स्तंभकार सीतापुर के भूपेन्द्र दीक्षित ने प्रथम तो किसान शीर्षक कविता सुनाई, तत्पश्चात
अंकित है नाम तुम्हारा....इस रचना का पाठ किया.
काव्य गोष्ठी के मुख्य अतिथि बिहार के डा. राम कुमार झा निकुंज जी ने कवि सच्चिदानंद तिवारी शलभ को जन्मदिन की बधाई देते हुए ,आज की वर्तमान परिस्थिति में देश को लक्ष्य करते हुए अपने कई धारदार दोहे पढ़े. एक दृष्टव्य है-
उबल रहा रतिराग से,
फंसा इश्क रतिराज,
मन विनोद सजनी हृदय,
करे प्रीति आगाज.
गोष्ठी के संयोजक एवं संचालक कविवर विनय विक्रम सिंह ने अवधी में गांधी जी के तीन बंदरों पर व्यंग्य रचना सुनाई तथा गीत जुगुनू चमक रहे हैं मछली मोहाल में, पढ़ा.
इस कविता गोष्ठी का समापन इसके अध्यक्ष, तड़िता काव्य विधा के प्रवर्तक, गीतकार सच्चिदानंद तिवारी शलभ के गीत
"यदि वृक्ष नहीं तो समीर नहीं,
जो समीर नहीं तो नीर नहीं,
यदि नीर नहीं होगा जग में
तो हम सबका ये शरीर नहीं,
द्वारा हुआ.
गोष्ठी के संयोजक, संचालक और ज्ञान विज्ञान के एडमिन विनय विक्रम सिंह जी ने कार्यक्रम के अतिथि सहभागियों का आभार प्रकट करते हुए, अगली गोष्ठी तक के लिए विदा मांगी.
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