घुरहू कतवारू भी डाक्टर लिख रहे हैं

 



डा . शिवानी सिंह मुस्कान


आजकल दिखावे का जमाना है लोग दिखावे में लगे है घुरहू कतवारू भी डाक्टर लिख रहे हैं डिग्री माँग लो तो औकात सामने आ जाये पर‌ बस दिखावे में जीना हैं।पढ़ें बी.ए. तक है लेकिन नाम के आगे डाक्टर होना चाहिए। अभी कुछ पूँछ लो 'भइया टापिक ही बता दो पी.एच.डी . की' तो बगले झाँकने लगेंगे, शर्म नहीं आती मजाक बना दिया है शिक्षा को! साहित्य को!और कितना नीचे गिराओगे अपने आप को बेशर्मों! कभी न कभी तो ये सच सामने आ ही जायेगा पर जब तक झूठ के सहारे जी रहे हो जी लो ,लेकिन जिस दिन सच सामने आयेगा जमाने से आँख नही मिला पाओगे ,और ज्यादा हास्यास्पद बात ये है कि लोग अनपढ़ गंवार का अन्तर नहीं समझ पा रहे रचनाओं का अन्तर नही समझ पा रहे कोई भी ऐरा गैरा खुद को डाक्टर बता देगा और ये मान लेंगे खैर ये भारत है यहाँ तो आज भी झोला छाप डाक्टर जाने कितने लोगों का असमय टिकट काट चुके हैं फिर शोध की डिग्री के विषय में क्या बोलूं शिक्षा के इस स्तर को बहरूपिया इन डिग्री धारियों को देख कर एक शिक्षिका होने के नाते मन पीड़ा से भर जाता है ,पर क्या करूँ इस समाज का जहाँ मूर्ख पूजे जाते हैं विद्वान धक्का ‌खाते है कलियुग का‌ विस्तार है ये सचमुच, लेकिन इतना अवश्य जानिए कि ऐसे लोगों की बेइज्जती एक न एक दिन अवश्य होगी क्योंकि कभी न कभी वो पहुँचेंगे विद्वानों की सभा मे बनेंगे ‌मजाक का पात्र।


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