"दिल दरिया ना आंख के पानी होला
ना जाने उ कब केकर कहानी होला
छिपावे के कोइ भी चाहे कबो केतनो
हिया में इ त हरदम समाइल रहेला
मत पूछी की रात बात का-का भइल
आंख से आंख के साथ का-का भइल
कबहीनो हिया से सटल, कभी दूर होलें
कह दीं मुलाकात में अब का-का भइल
बुनी चुअत रहे रात भर पलानी भले
गुदरी में लुकायिल रहे जवानी भले
पर उड़ान त साँचहुँ महलिये के होला
बीतल रतीये के कहानी रहे त
भले
दरद माटी पर लिखीं चाहे माटी से लिखीं
दरद के जोर से भले त रवानी हीं लिखीं
लिखीं जेतना दरद रउआ निरे भरल
तनीं नयनन के लोर के कहानी भी लिखीं,,,,,,,
********
© डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी
22 जून 2020
गज़ल