गज़ल


"दिल दरिया ना आंख के पानी होला
ना जाने उ कब केकर कहानी होला
छिपावे के कोइ भी चाहे कबो केतनो 
हिया में इ त हरदम समाइल रहेला

मत पूछी की रात बात का-का भइल
आंख से आंख के साथ का-का भइल
कबहीनो हिया से सटल, कभी दूर होलें
कह दीं मुलाकात में अब का-का भइल

बुनी चुअत रहे रात भर पलानी भले
गुदरी में लुकायिल रहे जवानी भले
पर उड़ान त साँचहुँ महलिये के होला
बीतल रतीये के कहानी रहे त 
भले

दरद माटी पर लिखीं चाहे माटी से लिखीं
दरद के जोर से भले त रवानी हीं लिखीं
लिखीं जेतना दरद रउआ निरे भरल
तनीं नयनन के लोर के कहानी भी लिखीं,,,,,,,
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© डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी
22 जून 2020 


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