गज़ल

 


 


 


ए ज़िंदगी तू ही बता मुझको
और कितने इम्तिहान बाक़ी हैं,
                 **
  तेरे मयख़ाने में, मैं ही अकेला हूँ
           या और भी कई साक़ी हैं,
                             **
इस क़द्र पिला ज़ाम तू ग़मों के महफ़िल में सब कहें कि ये तो शराबी है,
                       **
हर बार ही मुझे क्यों मिलते हैं दिलासे
बता तो सही मुझमें ऐसी भी क्या खराबी है,
                    **  
मेरे सब्र के समंदर अब सूख चले हैं
रही ना कोई अब मेरे दिल मे प्यास बाकि है,
                   **
अकेला नहीं हूँ मैं संग कारवाँ भी होगा
मुश्किल है डगर मग़र अभी तो जान काफी है,
                    **
सूदूर तक मुझे यूँ तो नहीं लगती उम्मीद कोई
ख़ैर कोई बात नहीं,इस सफ़र में और भी कई साथी हैं,
                    **
जिन्हें वहम था डूबने के वो संग छोड़ गए कब के
अरे भोर की चाह में हमने तो कई रातें ताकी हैं,
                     **
मुद्दतों बाद ख़ैर कोई ऐसा तो मिला
दिये ज़ख्म पे ज़ख्म जिसने बेहिसाबी हैं,
                 **
अच्छा सिला दिया हमें भी बड़ा गुमाँ था
मेरी हस्ती को मिटाने में ना छोड़ी कसर बाकी है,
                    **
क्या हुआ जो तूने संग छोड़ दिया "दीप" का
हौंसलें तो अब भी मेरे यूँ ही आफ़ताबी हैं !!

  कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"
 शिक्षक एवं साहित्यकार
 हिसार (हरियाणा) भारत
 संपर्क सूत्र-905095678


मेल अड्रेस - ddeep935@gmail.com


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