दोहरी जिम्मेवारी को पूर्णता से निभा रहीं आशा फैसिलिटेटर सरिता

-  स्वास्थ्य के विभिन्न प्रोग्राम में 8 साल से निभा रहीं जिम्मेवारी 
- 2012 में आशा के रुप में शुरु किया था काम 
- 7 से 8 घंटे रोज करती हैं क्षेत्र में भ्रमण 


रिपोर्ट आसीफ रज़ा


परिवार और समाज दोनों को एक साथ साधना अधीरों के बस की बात नहीं। जो दोनों के साथ सामंजस्य बिठा ले वह होता है वारियर। ऐसी ही एक वारियर हैं देसरी प्रखंड के लखनपुर ताल की आशा फैसिलेटर सरिता कुमारी। गृह विज्ञान में स्नातक सरिता ने जब 2012 में आशा के रुप में अपना काम संभाला। तब इनकी बात को लोग ध्यान से नहीं सुनते थे। अब आलम यह है कि लोग अब स्वास्थ्य के परामर्श के लिए भी इनकी खोज करते हैं। यह मुकाम सरिता ने ऐसे ही हासिल नहीं कि इसके लिए उन्होंने पारिवारिक जीवन और सामाजिक जीवन को एक दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ने दिया। बकौल सरिता कहती हैं कि वह गर्मी में सुबह 4 बजे ही उठ जाती हैं। पारिवारिक कर्तव्यों का निर्वहन कर वह प्रत्येक दिन 9 से 10 के बीच अपने काम पर निकल जाती हैं। इधर कोरोना संक्रमण ने तो व्यस्तता और बढ़ा दी है। रोज 40 से 50 घर का भ्रमण। तीन पंचायत के आशा और आंगनबाड़ी पर जाकर चल रहे कार्यों का सर्वेक्षण जैसे कार्यों को रोज ही अंजाम देना पड़ता है। जहां की आशा कमजोर पड़ती है वहां जाकर उनका साथ देना वह हमेशा ही करती हैं।  वह कहती हैं कि जब वो आशा के रुप में काम कर रही थीं। उस समय एएनसी ( प्रसव पूर्व जांच ) कराने के बावजूद ज्यादातर महिलाएं प्रसव कराने अस्पताल नहीं जाते थे। जब एक बार मैं साथ गई और जच्चा और बच्चा को जो सुविधाएं मिली। इससे लोगों को बड़ा अच्छा लगा और लोग खुद मेरे पास आकर प्रसव कराने जाने के लिए कहने लगे। इसके अलावा लगभग रोज दो आंगनबाड़ी साइटों पर जाती हूं। सप्ताह में दो दिन आरोग्य दिवस के मौके पर गर्भवती महिलाओं और बच्चों को टीके भी लगवाती हूं। 
  अपने पंचायत में सैंकड़ों प्रवासियों को खोजा
जब कोरोना का सर्वे चल रहा था। उस वक्त मैं और मेरी टीम ने मिलकर लगभग 7 से 8 हजार घरों का सर्वे किया। रोज हम 40 से 50 घरों मे जाते थे। घूमने के दौरान ऐसा बहुत बार आया कि मेरे छोटे -छोटे बच्चे हैं अगर उन्हें कुछ हो गया तो ... पर मैं यह सोंच कर आगे बढ़ जाती थी कि अगर हम लोग यह नहीं करेगें तो इसका और भी ज्यादा प्रसार हो सकता है। प्रत्येक दिन सर्वे के बाद एक अलग ही सुकून मिलता था। यह सोंच कर खुश हो जाती थी कि इतने लोगों में कोई लक्षण नहीं है। मेरे क्षेत्र से कोई संदिग्ध तो नहीं मिला पर मैंने सैंकड़ो प्रवासियों के आने की सूचना विभाग में दी। उन सबकी स्क्रीनिंग भी करवाई।  मैं सोंचती हूं कि जहां भी रहूं वहां का समाज स्वच्छ और स्वच्छ हो। मुझे फिर से तीन दिनों का सर्वे कार्य करने को मिला है। 
माहवारी के दिनों में स्वच्छता के लिए प्रेरित किया
गांव में अक्सर यह देखने में आता था कि महिलाएं सेनेट्री पैड के बदले कपड़ों का इस्तेमाल करती थीं। मैंने इसके लिए अपने आशा टीम के साथ एक टारगेट सेट किया कि जितने भी महिलाओं से वे मिलेगीं, उन्हें वह सेनेट्री पैड के इस्तेमाल के फायदों के बारे में बताएंगी। जो इसे खरीदने में अक्षम थे उन्हें कहा कि यह अस्पताल में कम कीमत पर मिलता है। विभाग की ओर से भी कई बार पैड का वितरण करवाया है। सरिता कहती हैं इस नौकरी से मेरे मन के सेवा भाव की पूर्ति तो होती ही है मेरे किसानी आधारित परिवार को आर्थिक संबल भी मिलता है।


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