दि ग्राम टुडे द्वारा पर्यावरण दिवस पर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी अत्यंत हर्षमय वातावरण में सम्पन्न हुई। गोष्ठी की सुरुचिपूर्ण सम्पन्नता में संरक्षक शिवेश्वर दत्त पाण्डेय, अध्यक्ष सुबाश चन्द्र पाण्डेय, मुख्य अतिथि भूपेन्द्र दीक्षित, विशिष्ट अतिथि बिपिन पाण्डेय जी की उपस्थिति का मनीषी योगदान रहा।
गोष्ठी का सशक्त व प्रवाहपूर्ण संचालन विनय विक्रम सिंह "मनकही" द्वारा किया गया।
गोष्ठी का आरम्भ कवयित्री सुनीता द्विवेदी जी द्वारा ईश आराधन से हुआ। तदनन्तर बिपिन पाण्डेय जी द्वारा प्रस्तुत, "नहीं देता दिखाई है,धरा पर कर्ण सा दानी।
नहीं गंगा सरीखा है किसी नद में कहीं पानी।
करें तारीफ क्या इसकी,हमें है जान से प्यारा,
न हिंदुस्तान का कोई,कहीं जग में मिला सानी।।
" इन पंक्तियों से माहौल देशराग से परिपूर्ण हो उठा।
भूपेन्द्र दीक्षित जी द्वारा पर्यावरण पर प्रस्तुत ,
"बहुत कुछ बिगारि चुके
अब कुछ बिगारौ न
नगर नगर डगर डगर
घर घर द्वार द्वार
बिरवा लगाव
इनका पालन पोसौ
और बड़ा करौ।।"
इन पंक्तियों से गहन भावमय चिंतनशील तथ्य को सबके सम्मुख रखा,
राम कुमार लिम्बा जी ने,
"अच्छे लोग शिकारी हो गये।
छल कपट के खिलाड़ी हो गये।।" तथा
"गाँव के मुखिया का अलग दस्तूर होता है।
पाँच साल बेपरवाह नशे में चूर होता है।।"
द्वारा सशक्त चुभते हुए व्यंग्य से सभी को सोचने पर विवश कर दिया, सुनीता द्विवेदी जी के द्वारा प्रस्तुत,
"आ गए? मैंने तो बुलाया नहीं था?
अब! आ ही गए हो!
तो बैठो रुको!
जब तक मन करे रहना!
और जब मन हो! चले जाना!
अपने मन से आते हो, अपने आप ही जाते हो, ना मैं बुलाता हूं,
ना मैं भगा पाता हूं, क्रोध!!! तुम!!"
ऐसी रहस्यवादी रचना से अबको चौंका दिया," नेहांश कुलश्रेष्ठ जी ने,
"अन्नदाता धरा पर हल चलता है,
कुम्हार माटी से घड़े बनाता है।
दोनों ही देवदूत धरती की गोद मे,
एक भूख तो दूजा प्यास बुझाता है।।"
इन पंक्तियों से अदभुत काव्यचित्र संचरित किये, डॉ अनिल शर्मा जी ने,
"धरती मैया करे पुकार, मानव बदलो निज व्यवहार।"
जैसी सन्देशसिक्त कविता से पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता को अभिव्यक्ति दी,
रविकांत जी की,
"पानी में तुम्हें पुकारा था ,
खुद को जानवर से बचाने को,
अबकी बार पानी ही न था,
आँखों में शर्माने को"
तथा
"मैं ही गंगा मैं ही यमुना मैं ही सरस्वती हूँ
हाँ मैं ही आदिशक्ति हूँ"
के ओजस्वी पाठ से सबको आह्लादित कर दिया व संचालक विनय विक्रम सिंह जी द्वारा पठित
"झुटपुटा हर साँझ का है, पालकी लेकर खड़ा।।
बाँझ कन्धों को टटोलूँ, भीष्म शैय्या पर पड़ा।।
शंख ध्वनियाँ ढूँढने में, देहघट घटने लगा।।
व्यस्त हूँ मैं, ये भुलावा, सत्य सा लगने लगा।।"
के सुमधुर पाठ से आयोजन गुंजरित हुआ।
गोष्ठी का समापन संरक्षक अध्यक्ष सुबाश चन्द्र पाण्डेय जी व संरक्षक शिवेश्वर दत्त पाण्डेय के वरद वक्तव्य से हुआ।