दंगे फसाद के दल दल मे,
दबता जा रहा भारत है |
छद्मयुद्ध से लथ पथ होकर,
सहता जा रहा भारत है |
आरक्षण, आंदोलन के नाम पर,
धर्म संगठन, जातिवाद के नाम पर,
जल रहा, बिखर रहा,
देश का हर एक स्थान है |
मातृभूमि के सानिद्य पाकर,
उछाल रहा उनका ही मान है |
छद्मयुद्ध से लथ पथ होकर,
सहता जा रहा भारत है |
तबीबीओ, सरकारी कर्मचारियों,
कोतवालो का बहिस्कार हो रहा है |
जीवन रक्षको का कैसा,
ये उपहास हो रहा है |
विटंबना के इस जाल से,
देश द्रोही के मायाजाल से,
असुरक्षित देशवासियो है |
छद्मयुद्ध से लथपथ हो कर
सहता जा रहा भारत है |
लाशो के ढेर पे, आतंक के क़हर पे
खेला जा रहा राजनीती का दांव है |
स्वछंद संविधान के निचे,
सहेमा जा रहा आम आदमी है |
छद्मयुद्ध से लथपथ हो कर
सहता जा रहा भारत है..
अल्पा मेहता