भ्रमर गुंजन करता वन- उपवन में,
औ सबको सुनाता मधुरिम गीत,
औरों से उसे है क्या लेना - देना,
वो तो करता फूल - पौधों से प्रीत,
वो तो करता फूल - पौधों से प्रीत,
रात्रि अंबुज के अंदर बस जाता है,
कहते 'कमलाकर' हैं प्रीति है इतनी,
सूर्योदय उपरांत ही निकल पाता है।।
कवि कमलाकर त्रिपाठी.
भ्रमर