अति अशांति रहती है भय से,
औ सोच - विचार में होती क्रांति,
मन भी न रहता स्थिर -चैतन्य,
है उरपुर में रहती विविध भ्रांति,
है उरपुर में रहती विविध भ्रांति,
सहज निद्रा भी नहीं आती है,
कहते 'कमलाकर' हैं भयप्रभाव से,
चिंतन - चिंता बढ़ जाती है।।
कवि कमलाकर त्रिपाठी.
भय