अवसाद की दवा है : श्रीमद्भगवद्गीता!!


डॉ.शिवानी सिंह


जिन्दगी रेस है हम सभी दौड़ रहे हैं अपने सपनों के लिए भाग रहे हैं इसी भाग दौड़ में हम, सहीं- गलत का अन्तर भी भूल जाते हैं , चकाचौंध , ग्लैमर इन सब की लत हमें अवसाद की तरफ धकेल देती है ,हमें पता ही नहीं चलता हम कब और कैसे अपनें ही सपनों के गुलाम बन गये हैं,और यहीं से शुरू होता है डिप्रेशन यानी अवसाद।
हम अपने मन-मन का सबकुछ पा गये तो ठीक ,वर्ना हमारी नाकामियां हमें अवसाद देती है ,सपनों को जीने का लालच, पूरा न होने पर बहुत अधिक कष्ट देने वाला होता है।
आपकी प्रसिद्धि आपके दुश्मन पैदा करती है, लोग आपसे ईर्ष्या करते हैं ,आपकी टांग खींचते हैं आपके अवसर वो स्वयं झपट लेते हैं, आप सोच भी नहीं पाते कि आप के पीठ पीछे कितने षड्यंत्र गढ़े जा रहे हैं,आपको नीचा दिखाने का हर अवसर भुना लिया जाता है, कुछ झूठ कुछ सहीं हज़ार तरह के आरोप आपको आपके लक्ष्य से भटकाने के लिए लगाये जाते हैं, इन सब का असर आपके मस्तिष्क पर अवश्य पड़ता है और फलस्वरूप धीरे-धीरे आप अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं, ये हर प्रतिभा के साथ होता है हम सबके साथ भी है किन्तु यदि आप इससे उबरना चाहते हैं तो मात्र एक पुस्तक है- "#भगवद्गीता"
गीता हमें निष्काम कर्म की शिक्षा देती है -#योगस्थःकुरु कर्माणि संगम् त्यक्तवा धनंजय।
सिद्धयसिद्धयोःसमो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।


अर्थात हे अर्जुन तुम आसक्ति को त्याग कर कर्म की सिद्धि एवं असिद्धि में समान बुद्धि रखकर योग में स्थित हो जाओ क्योंकि समत्व ही योग है ।
गीता में साफ साफ लिखा है कर्म के फल के प्रति कभी आसक्ति नहीं रखनी चाहिए जो सम भाव से कर्म करता है वो कर्मों के फल की आसक्ति से मुक्त हो जाता है ये कर्म के फल की आसक्ति ही दुःख का कारण है ।
एक जगह और देखिए -#ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात् क्रोधोऽभिजायते।।


अर्थात विषयों का चिंतन करने वाले पुरुष की उनमें आसक्ति हो जाती है आसक्ति से ही उन विषयों में कामना उत्पन्न होती है और कामनाओं में विघ्न उत्पन्न होने से क्रोध उत्पन्न होता है आगे श्लोक में बताते हैं क्रोध से कैसे मूढ़ता उत्पन्न होती है और बुद्धि का नाश हो जाता है बुद्धि का नाश ही मनुष्य के पतन का कारण होता है।
खैर यहाँ कुछ श्लोक इसलिए कि आप अवसाद में हैं तो गीता पढ़िए आपका मन शान्त होगा।
किन्तु हम अपनी संस्कृति को त्याग कर अवसाद की स्थिति में मनोवैज्ञानिकों के पास दौड़ लगाते हैं वो हमें नींद की दवा देता है हम बस सोते रहते हैं,हमारी स्थिति दिन ब दिन खराब होती जाती है शत्रु प्रसन्न होता है क्योंकि वो हमें मार कर भी किसी प्रकार के इल्ज़ाम से बच जाएगा,हम उसके जाल में फस जाते हैं हमारी प्रतिभा नष्ट हो जाती है और हम स्वयं भी।
इसलिए पाश्चात्य सभ्यता और दिखावे को त्याग कर अपनी संस्कृति की ओर लौटिए जिससे हम पर कोई अपने सम्मोहन का प्रयोग न कर सके।
हार- जीत, लाभ- हानि से बेपरवाह कर्म करते जाइए ये बिना सोचे कि हमें क्या मिलेगा क्या मिल रहा है, क्योंकि इस संसार में जो कुछ भी मिलता है वो सब नश्वर है हाँ हमारी परेशानियों पर विजय, हमारे संघर्ष की कहानी ये सब ज़रुर याद की जाएगी हमारे बाद भी।
तमाम महापुरुष तमाम लोग क्या वें ईर्ष्या के शिकार नहीं हुए? क्या उन्हें अवसाद नहीं मिला?
अवश्य मिला पर वे इन परेशानियों से उबर इस लिए गए क्योंकि उनके पास एक मजबूत दिमाग़ था और यदि नहीं है तो आप पढ़िए इन पुस्तकों को जो आपको जीने की कला एवं समझ विकसित करने में मदद करेगी।आज ये लेख शायद इसीलिए कि कोई भी एक व्यक्ति इस सत्य को समझ पाया तो शायद वो उबर पायेगा अपनी परेशानियों से!अपनी कुंठा से!अपने अवसाद से! सादर 🙏


©डॉ.शिवानी सिंह


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