ना कहीं जाने की जिद,
ना ठहरने के लिए जाहिर अपने जज्बात करती है
ऐ जिन्दगी........
तू भी आजकल बहुत ही कमाल करती है
हर वक्त रहती है खामोश सी
फिर भी
ग़म समेट कर मुस्कराया बेमिसाल करती है
देती रहती है साथ धड़कनों की रवानगी को
अपनी परेशानियों का इस्तकबाल
करती है
कभी सोचा भी कर
कभी पूछा भी कर
चुपचाप रहकर क्यूं अपनी सांसों को
धीरे धीरे हलाल करती है
.............................
मैं अपने दर्द कभी खोलती नहीं हूं
इतनी शोर है मेरी इस खामोशी में
कि.....
दिल मेरा भर गया अब,
लोगों को लगता है कि मैं बेजुबान हूं
कुछ बोलती नहीं हूं
उन्हें क्या पता
मैं अपने दर्द कभी खोलती नहीं हूं
चारों तरफ है सन्नाटाओं का शोर
जिसका ना कोई ओर है ना कोई छोर
चुप ही रहती हूं
अपनी जुबां खोलती नहीं हूं
मुसीबत को झेलना सीखा है
पर...!
भावनाओं को कभी भी
रिश्तों की तराजू में तोलती नहीं हूं
ऐ वक्त देना साथ मेरा अब
क्योंकि.....!!!...
मैं कभी भी तुम्हें कोसती नहीं हूं
किरण झा
स्वरचित