यूँ  ना  तुम  बुरा मानिए

 



यूँ  ना  तुम  बुरा मानिए
हमारी  भी  जरा सुनिए


सुनो, कुछ जरा सुनाइए
जरा  सा  भी न शर्माइए


मुख है तमतमा सा रहा
हमें  ओर  न तड़फाइए


क्या  खता  हुई है हमसे
तनिक  हमें  तो बताइए


गिले शिकवे जहन में हों
पास बैठ कर समझाइए


अगर जो बात मन में है
निसंकोच तुम फरमाइए


जज्बाते से  मत खेलिए
नहीं  जज्बात  छिपाइए


मन क्यों उदासी है भरा
हाल  जरा हमें  सुनाइए


चेहरा  बुझा सा क्यो है
पिछले  राज दफनाइए  


तुम्हें परिपक्व है समझा
बुद्धिमत्ता तो  दिखाइए


सुखविन्द्र हर जन्म तेरा
अपना हक तुम जताइए
*******


सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)


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