ये  राज ए मुहब्बत  बता तो  न दोगे

 



मेरी जान  बनकर  दग़ा  तो न दोगे ।
मेरी  दोस्ती  को  भुला  तो न दोगे।।


तुम्हें जान दे दी है अपना समझ कर।
नशेमन कही  दिल  गवां तो न दोगे।। 


दहकती है अक्सर  बुझाने  से पहले।
लगन की अगन को बुझा तो न दोगे।।


जिसे फूंक डाला आशियाँ समझ कर।
वही  आग  दिल में  जला तो न दोगे।।


मुद्दत से  पाने  को  तरसते  रहे  हम।
उसी  प्यार  की तुम सज़ा तो न दोगे।।


भेजा है क़ासिद को हालेदिल सुनाने।
ये  राज ए मुहब्बत  बता तो  न दोगे।


पुष्पलता राठौर


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