पूछ रही ये प्रश्न द्रौपदी,
भरत वंश रणवीरों से ।
कैसे ये बिषपान हुआ,
पाण्डुपुत्र रणधीरों से ।।
धर्मराज उस भरी सभा में,
जब पांचाली को हारे थे।
द्यूतक्रीडा की उस बाजी में,
भ्रात सभी निज बारे थे ।।
कैसे अपमानित भाषा में,
वह अंगराज भी बोला था ।
बीच सभा में दुर्योधन ने ,
अपनी जंघा को ठोका था।
आज द्रष्टि अर्जुन की जड़ है,
क्यों गायब हैं बाण तुणीरों से।
कैसे....
भरतवंश की लाज आज,
पितामाह से ये पूछ रही ।
धृतराष्ट्र,द्रोण ये सभी मौन ,
द्रौपदी एकाकी जूझ रही।
उत्तर नहीं कृपाचार्य पर भी,
अपमानित उस नारी का ।
चतुर विदुर के पास नहीं था,
उत्तर उसकी लाचारी का ।
आर्यावर्त खाली लगता है
भीम जैसे कर्मशीलों से ।।
कैसे....
कुंती पुत्र ,सुनो आज,
द्रुपद सुता की बात सुनो।
आंखों की चिंगारी देखो,
मन के झंझावात सुनो।
एक अंजुरी रक्त चाहिए ,
दु:शासन की छाती का ।
अन्तिम योद्धा मिटाना होगा,
दुर्योधन परिपाटी ...का।।
मुझको मेरा मान चाहिए,
पाण्डुपुत्र शूरवीरों से ।
कैसे....
हे माधव ,हे कान्ह सुनो,
मेरी पीड़ा के गान सुनो।
मेरे मन की चीत्कार संग
अब मेरा आवाहन सुनो।
हे मधुसूदन,रक्षार्थ मेरी ,
अब मेरी लाज बचाओ तुम।
स्वाभिमान हित नारी के,
अब उसका चीर बढ़ाओ तुम ।।
करके तर्क आज मैं हारी ,
महारथी तर्कशीलों से ।
कैसे...
लाज बचाई चीर बढ़ाया,
सम्पूर्ण सभा फिर रही मौन ।
सबके समक्ष नहीं यदि उत्तर,
इनके उत्तर फिर देगा कौन ।
नहीं कोई अचूक बाण,
जो नारी को वह सम्मान मिले।
नहीं अपराध को मौन सहो,
न क्षमा का उसे प्रतिदान मिले।।
जकड़ी हुई आज भी नारी ,
पारम्परिक जंजीरों ....से ।।
कैसे…..
©️®️
रंजना शर्मा ✍️
26/4/2020