उऩके नैनों का नेह निमंत्रण मुझको लुभा गया ,
जैसे सुबह क्षितिज में लालिमा बिखेरे सूरज आ गया ।
बाँकि चितवन ,मीठी मुस्कान ,
भर गयी दिल के कोने कोने में मीठी सुर और तान ,
अश्रुपूरित नयन से कोई भरमा गया ।
उनकी नैनों का नेह निमंत्रण मुझको भा गया ।
राह चलता भला क्या और मैं ,
जाते जाते फिर लौटकर मैं आ गया ।
जानें क्यों प्यासी थी सदियों से रुह मेरी ,
उसने पुकारा मैं जीवन पा गया ।
उनके नैनों का नेह निमंत्रण मुझको भा गया ..
अधरों पर दबी -दबी मुस्कान
कलेजा चीर गयी मेरा ,
मानों वन में बसंत छा गया ।
उनके नैनों का नेह निमंत्रण मुझको भा गया ।
लद गया गुलमोहर चटक लाल पुष्पों से
जैसे मखमली हरी साड़ी में कोई बूटा लगा गया ।
उनके नैनों का नेह निमंत्रण मुझको भा गया...
सुधा मिश्रा द्विवेदी
कोलकाता