चले हम चले हम
जहां माँ हमारी ,
यह माया की दुनियां
तुम्हें हो मुबारक।
जहाँ स्वार्थ के बीज
दिलों में हों उगते ,
वहां की जमीं आसमा
हो मुबारक ।।
गुजारी है हमने
घुटन में जवानी ,
किया मौत का
सामना दर कदम है ,
ना पहचाना माँ को
ना जाना पिता को,
फ़रेबी ए दुनियां
तुम्ही को मुबारक ।।
आवाज देकर
पुकारी है मईया,
यशोदा मैं तेरी
तू मेरा कन्हैया,
मेरे पास आ लौट
आ लाल मेरा,
जिगर का तू टुकड़ा
जिगर में समाजा,
लुटाया जनम पर
ना पाया अधेला,
ए चकाचौंध दुनियां
तुम्हीं को मुबारक ।।
मां के चरणों में
कोटि-कोटि प्रणाम
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सुरेन्द्र दुबे (अनुज जौनपुरी)