शाश्वत जो है सदा बना ही रहेगा

 


हर बात में अच्छाई ढूंढ कर देखिए
उदासी की परतें जरा उतारकर फेंकिए


पत्ते सब झर जाते पेड़ नहीं गिरता शोक में
फिर नए पल्लब उगते पेड़ खड़ा रहे धैर्य से
रोके नहीं रुकता कभी
पतझड़ के बाद बसंत देखिए....


हंस रहे आज जो जी भर के कल  वो रोते हैं
पाते जिसे  जीवन भर कमा के पल में खोते हैं
छूट सब जाना यहीं सोच 
ये दुनिया की दौलत जोड़िए.....


जो भी आया एक दिन जाएगा जरूर
चला गया जो किसी दिन आएगा जरूर
समय चक्र में हम बंधे 
ऊपर नीचे बढ़ते सोचिए ....


सदा एक सा रहा किस का वक्त है
नम्र कभी जीवन कभी होता सख्त है
एक सिक्के के पहलू सुख दुख
दोनों का मजा लीजिए.....


शाश्वत जो है सदा बना ही रहेगा
उगेगा सुबह जो सूर्य सांझ ढलेगा
सब में है एक अविनाशी
अंतर में चलकर ढूंढिए....


मान हुआ कभी तो अपमान भी पाओगे
अशांति मिली आज कल शांति भी पाओगे
हानि लाभ मान अपमान
ठहरे नहीं किसी ठौर जांचिए....
17/05/20
स्वरचित : सुनीता द्विवेदी
कानपुर उत्तरप्रदेश


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