राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान में वेब-संगोष्ठी आयोजित 

देहरादून । भाषा और संप्रेषण के महत्व को समझने, इसकी कठिनाईयों को दूर करने तथा भाषा संप्रेषण कला के प्रति संवेदनशीलता लाने के लिए राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान, देहरादून में आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना तथा ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग,मैसूर (कर्नाटक) के सहयोग से राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान में एक दिवसीय वेब-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक नचिकेता राउत ने अपने स्वागत संबोधन में भाषा की विषय वस्तु के संदर्भ अपने विचार व्यक्त करते हुए भाषा संप्रेषण की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने वर्तमान के इस वैश्विक आपाततकाल में वेबीनार को संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम बताया। आज डिजिटल संप्रेषण की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है और संस्थान इस संप्रेषण को बड़े स्तर पर अपनाने की ओर निरंतर अग्रसर है।
    आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो० राजीव रंजन ने सभी प्रतिभागियों, सधानसेवियों, विशिष्ट वक्ताओं का स्वागत किया और कहा कि मुझे प्रसन्नता है  कि इस कोविड-19 महामारी की विकट परिस्थिति में भी हम सबने मिलकर इस महत्वपूर्ण विषय का चयन किया है। मैं इंजीनियरिंग क्षेत्र से हूँ पर हमारे क्षेत्र में भी भाषा संप्रेषण की महत्वपूर्ण भूमिका है द्य अब यदि मुझे किसी भी वैज्ञानिक सूचना का आदान प्रदान करना है तो मेरा सही संप्रेषण तभी संभव होगा जब मेरी भाषा पर पकड़ होगी  और तभी समझ का विकास हो सकेगा  वैज्ञानिक भी अपनी समझ को भाषा के साथ ही सँजोये रख सकते हैं द्य जैसे रोबोटिक्स का ज्ञान हो, या किसी मशीन की कार्यप्रणाली, इसे समझने के लिए भाषा और संवाद महत्वपूर्ण है। प्रो0 पुष्पावती- निदेशक ऑल इंडिया इन्स्टीट्यूट आफ स्पीच एंड हियरिंग, मैसूर ने सभी को इस विकट परिस्थिति में वेबीनार आयोजित करने के लिए बधाई दी और इस तरह के आयोजनों की महत्ता पर प्रकाश डाला।  
         वेबीनार में प्रथम वक्ता डॉ० ज्ञानदेवमणित्रिपाठी, डीन,शिक्षाशास्त्र,आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना भाषा का विकास और शिक्षा पर विचार व्यक्त करते हुए  उन्होंने कहा कि  भाषा एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। प्रो०निरंजन सहाय, हिंदी भाषा विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी ने भाषा और संप्रेषण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा भाषा कई बार भेद भाव भी करती है जैसे हम कहते हैं कि चपरासी आया और साहब आ रहे हैं, उन्होंने कहा कि ऐसे भेदभाव भी हम सबको दूर किए जाने चाहिए। प्रो० एस. पी. गोस्वामी,  स्पीच पैथोलॉजी विभाग,अखिल भारतीय वाक श्रवण संस्थान, मैसूर ने अपने वक्तव्य में मस्तिष्क में हुई क्षति  से  भाषा पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों  के बारे में बताया और साथ ही कुछ सुझाव भी दिए। आकलन और प्रतिपूर्ति के लिए समय निर्धारित किया गया था जिसमें प्रतिभागियों ने विशेष उत्साह दिखाया। वेबीनार के सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हुए आयोजन सचिव डॉ०पंकज कुमार ने कहा कि भाषा एक बृहद संप्रत्यय है और इसे समझना बाहर कठिन है। भाषा अर्जित करने की क्षमता जन्मजात होती है। लेकिन भाषा का सृजन मानसिक प्रक्रियाओं से किया जाता है। इस कार्य के लिए मानव के संवेदी अंग मस्तिष्क तथा अन्य सम्बन्धित अंग सहायक होते हैं, किंतु यदि किसी सामवेदी अंग में बाधा उत्पन्न होती है तो मस्तिष्क की प्रोसेसिंग में बाधा उत्पन्न होती है। इस कड़ी में हुए क्षति की क्षतिपूर्ति की जानी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आज के संदर्भ में वेबिनार की बढ़ती आवश्यकता और प्रतिभागियों के उत्साह को देखते हुए भविष्य में और भी वेबीनार आयोजित किए जाएंगे।


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